ना आने का सुख
तटस्थत रहा जो
वो मौन मन रहा।।
था जो हृदय
वह रोता रहा
हँसता रहा ।।
मगर मन ना माना
तटस्थता को
सही ठहराता रहा
जाने को…
अटल सत्य मानता रहा।।
हृदय बताता रहा
सुख का अर्थ
मन मानता रहा
कि “कुछ भी शाश्वत नहीं।”
और यहीं,
मन-हृदय का संघर्ष
न केवल चलता रहा,
बल्कि ये और
बढ़ता रहा ।।
विकास धर द्विवेदी
जून 2025
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