गुजरात में मेरी यात्रा भुज शहर से प्रारंभ हुई। यह कच्छ ज़िले का प्रमुख नगर है और सांस्कृतिक दृष्टि से अत्यंत समृद्ध है। सबसे पहले मैंने कच्छ के ऐतिहासिक और सांस्कृतिक वैभव को समर्पित कच्छ म्यूज़ियम का भ्रमण किया। यहाँ कच्छ की लोक कला, वेशभूषा, संगीत व शिल्प की दुर्लभ झलक देखने को मिली। ये ऐतिहासिक दृष्टि से काफ़ी पुराना है।
इसके उपरांत मैंने श्री स्वामीनारायण मंदिर, भुज गया। यह मंदिर गुजरात में भगवान स्वामीनारायण द्वारा स्थापित प्रमुख मंदिरों में से एक है। इसकी स्थापत्य कला और आध्यात्मिक वातावरण अत्यंत मनोहारी है। गुजरात में साफ़-सफ़ाई की भूरी-भूरी प्रशंसा की जानी चाहिए, मंदिर बहुत ही स्वच्छ है। कभी-कभी भटकते हुए बहुत अच्छी जगह मिल जाती है, जैसे मुझे मिला- श्यामजी कृष्ण वर्मा स्मारक।
भुज से थोड़ी दूरी पर मांडवी के मार्ग में मैंने भारत के स्वतंत्रता संग्राम सेनानी श्यामजी कृष्ण वर्मा के स्मारक ‘क्रांति तीर्थ’ का दर्शन किया। यह स्मारक उनकी विचारधारा और देशभक्ति का प्रतीक है और उनके द्वारा लंदन में स्थापित ‘इंडिया हाउस’ का पुनर्निर्मित संस्करण यहाँ दर्शाया गया है।
वीर सावरकर, मैडम भीकाजी कामा जैसे कई स्वतंत्रता सेनानियों ने इंडिया हाउस से प्रेरणा ली थी। वर्मा जी के अस्थिकलश 2003 में जिनेवा से भारत लाने के लिए वर्तमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की प्रशंसा की जा सकती है कि उन्होंने यह एक ऐतिहासिक कार्य किया।
मांडवी पहुँचकर मैंने वहाँ के प्रसिद्ध समुद्र तट की ओर रुख किया। लहरों और स्वच्छ रेत के साथ मांडवी बीच का एक ख़ूबसूरत-सा नजारा देखने को मिला। विजय विलास पैलेस, मांडवी में ही स्थित यह शाही महल कच्छ के महाराजाओं की समृद्धि और स्थापत्य कला का उदाहरण है। महल की बालकनी से समुद्र की झलक और आसपास का प्राकृतिक सौंदर्य अद्वितीय रहा। मैं काफ़ी देर तक ये आनंद लेता रहा।
इसके बाद मैंने भारत के अंतिम पश्चिमी छोर की ओर प्रस्थान किया। गुहार मोती गाँव में कदम रखते ही एक अलग ही सन्नाटा और सीमा का अहसास हुआ। यही वह स्थान है जो भारत के पश्चिमतम भूभाग के रूप में जाना जाता है – एक ऐसा कोना जहाँ देश का अंतिम सूरज अस्त होता है। गुहार मोती, नारायण सरोवर ग्राम पंचायत में आता है।
गुहार मोती के पश्चिम में अरब सागर है। गाँव में 40 परिवार है, कुछ मध्यम और निम्न वर्गीय के परिवार रहते हैं। कुछ के घर पक्के हैं कुछ घर टीन शेड के है। पोस्ट आफ़िस जर्जर हालत में है, ग्राम पंचायत भवन में सुधार की आवश्यकता है। अधिकांश परिवारों का मुख्य व्यवसाय कृषि और पशुपालन है। कक्षा-5 तक के बच्चे गाँव के ही स्कूल में पढ़ते हैं और आगे के लिए उन्हें नारायण सरोवर, लगभग 4 किलोमीटर पैदल चलकर जाना होता है।
शाम को कोटेश्वर मंदिर में भगवान भोलेनाथ का दर्शन और आरती में शामिल हुआ। कोटेश्वर मंदिर को “द्वारका के पंच तीर्थों” में भी गिना जाता है। मंदिर के संदर्भ में मान्यता है कि एक बार रावण भगवान शिव से मिला एक शिवलिंग लेकर लंका जा रहा था, रास्ते में उसे जोर से लघुशंका लगी, उसने शिवलिंग को एक बालक को दे दिया, जिसने शिवलिंग ज़मीन पर रख दिया। रावण उसे उठा न सका और क्रोध में तोड़ दिया। शिवलिंग के टुकड़े फैल गए, जिससे यह स्थान कोटेश्वर कहलाया।
14 जुलाई 2025
विकास धर द्विवेदी
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