ब्रिटिश रेजिडेंसी, लखनऊ

 कुछ तस्वीरें...वहीं की हैं। गोमती नदी के तट पर स्थित इस रेजीडेंसी को अवध के नवाबों ने अंग्रेजों के लिए बनाया था। उन्हें क्या पता था! की बाद में उनका कब्रिस्तान भी यहीं बनेगा। अंग्रेज इस भवन में रहकर ब्रिटिश शासन का प्रतिनिधित्व करते थे। 1857 के स्वतंत्रता संघर्ष के समय अंग्रेज यहां थरथर कांप रहे थे।

आज भी कोई अंग्रेज लखनऊ आता है, तो अपने पुरखों को जरूर देखने रेजिडेंसी जाता है। 3 हज़ार से ज्यादा अंग्रेजों के शव बगैर किसी विशेष धार्मिक रीति-रिवाजों के यहां  दफन है। स्वतंत्रता सेनानियों ने अंग्रेजों के छक्के छुड़ा दिए थे। 

रेजीडेंसी यानी रहने की जगह। इस रेजीडेंसी में ब्रिटिश जर्नल और उनके सहयोगी रहते थे।  1857 विद्रोह के बाद यह महल से खंडर बन गया। अब अवशेष के रूप में उत्तर प्रदेश सरकार के लिए एक पर्यटन आय साधन के रूप में विद्यमान है।

अवध की राजधानी लखनऊ थी। नवाब आसिफुद्दौला बहादुर ने 1775 में रेजीडेंसी का निर्माण शुरू कराया था, जिसे नवाब सआदत अली खां ने 1800 में पूरा कराया। अंग्रेजों के लिए यह आरामदायक जगह थीं। 

क्योंकि यहीं से वह मुगल बादशाह के अधिकारों को धीरे-धीरे छीन रहे थे, और उनकी जड़ों को काटकर अपनी जड़ें फैला रहे थे। पाप का घड़ा भरा, और 1 दिन लोगों का आक्रोश फूटा।

मेरठ में शुरू हुए स्वतंत्रता सेनानियों के विद्रोह के साथ अवध में भी तालुकोदारों ने अंग्रेजो के खिलाफ प्रत्यक्ष अप्रत्यक्ष रूप से मोर्चा खोल दिया। तीन मई 1857 को क्रांति का बिगुल अवध में बज गया। 


30 जून 1857 को चिनहट के पास इस्माइलगंज में अंग्रेजों का सामना पहली बार क्रांतिकारियों से हुआ। इसके बाद क्रांतिकारियों ने लखनऊ के रेजिडेंसी घेर लिया। संघर्ष हुए, कई अंग्रेज मारे गए, वहीं कई स्वतंत्रा सेनानी भी शहीद हुए।

इस रेजीडेंसी के बाहर एक कहानी बड़ी प्रचलित है, बात उस समय की है जब इस रेजिडेंसी की घेराबंदी नहीं की गई थी। एक स्थानीय दुकानदार ने कहानी कुछ इस प्रकार सुनाई। 1971 के समय लाल बहादुर विश्वविद्यालय के हॉस्टल के 3 छात्रों में एक शर्त लगी। शर्त यह थी कि एक रात इस रेजीडेंसी में अकेले बिताना है।

रात को दोनों दोस्त ने उस छात्र को यहां पर छोड़ गए और सुबह उसकी लाश मिली।पोस्टमार्टम रिपोर्ट में पता चला उसको दिल का दौरा पड़ा था; शायद डर की वजह से उसकी मौत हुई थी। मैंने कहानी सुनी तो बड़ी दिलचस्प लगी, लेकिन मैं इसकी पुष्टि नहीं करता हूं। 


रेजीडेंसी के मध्य में संग्रहालय बना है, अंदर एक चर्च, मस्जिद,  कब्रिस्तान और एक इमामबाड़ा भी है। बैली-गेट से रेजीडेंसी का प्रवेश द्वार है, वैसे रेजीडेंसी परिसर में कई इमारतों की दीवारों पर 1857 की क्रांति में हुई गोला-बारी के निशान आज भी दिखाई देते है ।


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