आखिर पुरुष आयोग का गठन कब?



दहेज प्रताड़ना, दहेज हत्या और दुष्कर्म व छेड़छाड़ के झूठे मुकदमों की बढ़ती संख्या को देखते हुए अब देश में पुरुष आयोग बनाने की मांग बढ़ती जा रही है। हाल में ही दिल्ली में फिल्म इंडियाज संस की स्क्रीनिंग के मौके राजसभा सदस्य सोनल मानसिंह ने यह मुद्दा फिर उठाया है। 

दीपिका नारायण भारद्वाज के द्वारा निर्देशित डॉक्यूमेंट्री फिल्म 'इंडियाज संस: टेल ऑफ़ फाल्स रेप केस सर्वाइवर्स'  की स्क्रीनिंग के मौके पर बतौर मुख्य अतिथि राजसभा सदस्य पदम विभूषण सोनल मानसिंह व बीजू जनता दल के सांसद अनुभव मोहंती मौजूद थे। दोनों सांसदों ने पुरुष आयोग गठन करने की मांग को पुनः दोहराया है।

इससे पूर्व भी समय-समय पर पुरुष आयोग गठन करने की मांग लगातार होती रही है। परंतु सरकार ने इस बारे में कोई गंभीर विचार नहीं किया है। जो दुख का विषय है। इसको लेकर अखिल भारतीय पत्नी अत्याचार विरोधी संघ भी पिछले कई वर्षों से देश में काम कर रहा है।

न्याय की प्रणाली में लिंग भेद नहीं होना चाहिए। न्याय का आधार समानता के बिंदुओं पर केंद्रित होना चाहिए। पीड़ित महिला हो या पुरुष उसे न्याय जरूर मिलना चाहिए लेकिन आज ऐसा नहीं हो रहा है। लाखों लोग न्याय पाने के लिए वर्षो तक दर-दर भटकते रहते हैं।

महिलाओं के लिए 65 से अधिक कानून, डेढ़ दर्जन से अधिक हेल्पलाइन, हेल्प डेस्क, महिला थाना, महिला आयोग है तो पुरुषों के लिए पुरुष आयोग क्यों नहीं होना चाहिए? तमाम कानून एक पक्षीय जेंडर बॉयस्ड है, जो समानता के बिंदुओं का घोर उल्लंघन करते हैं।

अगर पुरुष आयोग होता तो शायद सुशांत सिंह राजपूत, भय्यू महाराज, बक्सर कलेक्टर मुकेश पाण्डेय, डीआइजी बोरना, सहारनपुर एसपी सुमित दास, दिल्ली एसीपी अमित सिंह आदि आत्महत्या नहीं करते। यह बिल्कुल वैसे ही दशा है कि "आधे से अधिक हूँ, पर अधिकार से वंचित हूँ।"

महिलाओं के अधिकार और न्याय की बात सब जगह होती है लेकिन अब वक्त आ गया है कि हमें पुरुषों के अधिकार और न्याय की बात करनी चाहिए। किसी के साथ अन्याय नहीं होना चाहिए चाहे वह महिला हो या पुरुष। सबको समानता के नजरिए से ही देखा जाना चाहिए।

टिप्पणियाँ

Unknown ने कहा…
बाखूब सारांश प्रस्तुत किया।
सैकड़ों पृष्ठ की पुस्तक का निचोड़ सैकड़ों शब्द में प्रस्तुत कर आपने सराहनीय कार्य किया।