लड़कियों की शादी की उम्र में बदलाव की आवश्यकता



21 वी सदी के निर्माण में महिलाओं की भूमिका बड़ी महत्वपूर्ण है। पूरी दुनिया में महिलाओं से संबंधित अधिकारों को लेकर लगातार चर्चा चल रही है। ऐसे में हम सभी को भारतीय कानून में महिलाओं को संविधान के अनुरूप समानता के पहलुओं पर विचार करने की आवश्यकता है। वोट देने के अधिकार से लेकर पैतृक संपत्ति में महिलाओं के अधिकार तक को समाज अब धीरे धीरे स्वीकार कर रहा है। यहीं नहीं समुदाय अपने रीति रिवाज और धर्मों में भी महिलाओं को मुख्यधारा में लाने का काम कर रहा है।

ऐसे में परिवार से लेकर सिविल सोसाइटी में महिलाओं के अधिकार को लेकर एक जागरूकता की आवश्यकता है। ये जागरूकता सिर्फ विचार पर ही नहीं व्यवहार पर भी होनी चाहिए। आधुनिक समाज में महिलाओं की शिक्षा और कैरियर के लगातार अवसर बढ़ते जा रहे हैं। महिलाओं की भूमिका समाज में अब सहायक से बढ़कर सहभागी की होती जा होती जा रही है।

ऐसे में लड़कियों की शादी की उम्र बढ़ाने पर पुनर्विचार करने की आवश्यकता है। मौजूदा कानून के मुताबिक लड़कियों की शादी की उम्र 18 साल और लड़कों की शादी की उम्र 21 साल है। आपको ज्ञात होगा कि शारदा अधिनियम में साल 1978 में संशोधन करते हुए सरकार ने लड़कियों की शादी की उम्र को 15 से 18 वर्ष कर दिया था। लेकिन अब इसे 18 से  21 वर्ष करने की आवश्यकता है। जिससे की भारतीय संविधान के समानता के प्रावधान की रक्षा की जा सकें।

सेंटर फॉर सोशल रिसर्च की डायरेक्टर डॉ रंजना कुमारी का भी मानना है कि लड़की और लड़के की उम्र विवाह के वक्त बराबर होनी चाहिए इससे बहुत सारे फायदे होंगे। लेकिन समाज का एक बड़ा तबका यह मानता है कि लड़की जल्दी मैच्योर हो जाती है जबकि लड़का देर से मैच्योर होता है। जबकि यह बात वैज्ञानिक आधार पर सच साबित नहीं होती है। सिर्फ यह एक सामाजिक धारणा है। जिसको तोड़ने की आवश्यकता है।

अगर लड़कियों की शादी की उम्र 21 साल होगी तो वह अपना ग्रेजुएशन भी पूरा कर लेंगी। फिर उनके लिए नौकरी के भी अवसर बढ़ जाएंगे।‌ इससे वह अपना जीवन शिक्षित और हेल्दी तरीके से गुजार सकती है। इससे शिशु मृत्यु दर में भी कमी आएगी। क्योंकि लड़कियां अपने बच्चे का लालन-पालन कम उम्र में अच्छे से नहीं कर पाती है। वहीं अपरिपक्व शरीर से बच्चा इतना मजबूत भी पैदा नहीं होता है। तो नैचुरली बच्चे की हेल्थ का भी एक पहलू है कि वह स्वस्थ नहीं रहता है।

हम सब जानते हैं कि विवाह सामाजिक सांस्कृतिक प्रक्रिया का एक पहलू है। इसे सिर्फ कानून से नहीं जीता जा सकता है। लोग शादी के सवाल में परिवारों की पृष्ठभूमि से लेकर जाति सहित कई पहलुओं पर विचार-विमर्श करते है। ऐसे में लोग सरकार के कहने से शादी नहींं करेंगे। लेकिन सरकार अपने स्तर से सुधार करना चाहिए। आम जनमानस को भी इस पर विचार करने की आवश्यकता है कि वह अपनी बच्चियों को आत्मनिर्भर बनाना चाहते हैं कि नहीं? ऐसे में इस सामाजिक सांस्कृतिक परिवर्तन के लिए घर- परिवार, संस्कार, जाति, पंचायत, धार्मिक नेतागण और बड़े बुजुर्ग को तैयार रहना चाहिए। वहीं सरकार को संविधान के समानता के अधिकारों की रक्षा हेतु लड़कियों की शादी की उम्र 18 से 21 वर्ष कर देनी चाहिए।


विकास धर

टिप्पणियाँ

Kumar Anoop ने कहा…
बढ़िया लेख है भाई
Vikas Dhar Dwivedi ने कहा…
@Kumar Anoop आपका आभार