आयोगों में उलझी नेताजी के मौत के रहस्य की गुत्थी



आजादी के महानायक सुभाष चंद्र बोस जीवित हैं या नहीं, इसको लेकर आज भी रहस्यमय स्थिति बनी हुई हैं। बीते सप्ताह इस बाबत कलकत्ता हाईकोर्ट ने एक हलफनामा दाखिल करने को केंद्र सरकार को कहा है।

आपको बता दें हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश प्रकाश श्रीवास्तव की खंडपीठ में हरेन बागची नामक शख्स की ओर से जनहित याचिका दायर की गई है। इसको लेकर कोलकाता हाई कोर्ट ने केंद्र सरकार को 2 महीने का समय दिया है। 

नेताजी सुभाष चंद्र बोस पूरे देश के लिए गर्व का विषय है। आजादी के बाद उनकी मौत को लेकर समय-समय पर कई आयोग गठित हुए, लेकिन सभी सत्य के रहस्य से पर्दा उठा पाने में नाकामयाब रहें। सभी आयोगों की रिपोर्टों पर संदेह व्यक्त किया गया।

सबसे पहले शाहनवाज आयोग 1954 और फिर खोसल आयोग 1970 में गठित किया गया था। दोनों आयोगों ने अपनी रिपोर्ट में नेताजी की 1945 में एक दुर्घटना में मृत्यु होने की बात कही थी।

लेकिन 1999 में गठित मुखर्जी आयोग की रिपोर्ट में इस दुर्घटना में नेताजी की मृत्यु की रिपोर्ट को खारिज कर दिया। इसके बाद से ही इसको लेकर एक और विचित्र स्थिति बन गई, हालांकि मुखर्जी आयोग की रिपोर्ट को तत्कालीन मनमोहन सरकार ने स्वीकार नहीं किया था।

मुखर्जी आयोग ने अपनी रिपोर्ट में आगे कहा था कि जापान के रेनकोजी मंदिर में जिस भस्मावशेषों के नेताजी का होने का दावा किया जा रहा है, वह दरअसल एक जापानी सैनिक का है। मुखर्जी आयोग ने मामले की जांच में 100 से ज्यादा देशों में नेताजी से जुड़ी फाइलों की समीक्षा की थी। इस बाबत जांच दल के सदस्यों ने जापान, रूस व ताइवान का दौरा भी किया था।

इसी काल में नेताजी को देश के कई स्थानों में अलग-अलग रूपों में देखे जाने की बात कही गई। फैजाबाद के गुमनामी बाबा से लेकर छत्तीसगढ़ राज्य में जिला रायगढ़ तक में नेताजी के होने को लेकर कई दावे पेश किये गये लेकिन इन सभी की प्रामाणिकता संदिग्ध है। छत्तीसगढ़ में तो सुभाष चन्द्र बोस के होने का मामला राज्य सरकार तक गया। परन्तु राज्य सरकार ने इसे हस्तक्षेप के योग्य न मानते हुए मामले की फाइल ही बन्द कर दी।

ऐसे में हमारे आजादी के नायक जिंदा है या नहीं? इसको लेकर दुविधा की स्थित बनी हुई है। आवश्यकता है कि केंद्र सरकार को इसको लेकर अपनी स्थिति स्पष्ट कर देनी चाहिए।

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