दिल्ली उच्च न्यायालय कई गैर सरकारी संगठनों के उस याचिका पर सुनवाई कर रहा है, जिस पर उन्होंने वैवाहिक दुष्कर्म को अपराध करार देने की बात की है। इसको लेकर देश के बौद्धिक वर्ग में गहन विचार-विमर्श का दौर शुरू हो गया है। वैवाहिक दुष्कर्म को अपराध की श्रेणी में सम्मिलित करने से भविष्य में इसके क्या परिणाम होंगे? इसको लेकर व्यापक चिंता प्रकट की जा रही है। ऐसे में इन चिंताओं का एक व्यवस्थित समाधान आवश्यक है।
इस संदर्भ में उच्च न्यायालय ने कहा है, "यह कहना ठीक नहीं है कि अगर किसी महिला के साथ उसका पति जबरन संबंध बनाता है तो वह महिला भारतीय दंड संहिता की धारा 375 (दुष्कर्म) का सहारा नहीं ले सकती है और उसे अन्य फौजदारी या दीवानी कानूनों का सहारा लेना पड़ेगा।" इसी मामले में पीठ ने यह भी कहा है कि भारतीय दंड संहिता की धारा 375 के तहत पति पर अभियोजन चलाने से छूट ने दीवार खड़ी कर दी है।
अदालत की टिप्पणी व्यक्तिगत स्वतंत्रता और जीवन की रक्षा के संदर्भ में अति महत्वपूर्ण है। वैवाहिक दुष्कर्म को अपराध की श्रेणी में शामिल नहीं करने से विवाहित महिलाएं हिंसा चक्र में फंस जाती हैं। और इस हिंसा के चक्र के जाल में फंसकर उनकी जिंदगी तबाह हो जाती है। उनके पास और विकल्प न होने की वजह से उनको प्रताड़ना का सामना करना पड़ता है। विश्व के कई देशों में वैवाहिक दुष्कर्म को अपराध की श्रेणी में शामिल किया गया है। तो फिर भारत में क्यों नहीं?
वैवाहिक दुष्कर्म घर की चाहरदीवारी के भीतर घटित हुई वह घटना है, जिसका कोई सबूत नहीं नहीं होता है। इसमें पत्नी का यह कहना कि उसके साथ पति ने दुष्कर्म किया है, जिसकी सत्यता या असत्यता को सिद्ध करना एक चुनौती है। लेकिन फिर भी इस समस्या का निदान किया जा सकता है। वैवाहिक दुष्कर्म को भारतीय दंड संहिता की धारा 375 में दुष्कर्म में सम्मिलित ना करके उसके लिए एक अलग से कानून बनाकर इस समस्या का समाधान किया जा सकता है।
देश के कई विद्वानों ने घरेलू हिंसा संरक्षण अधिनियम 2005 की तरह इस नए कानून के दुरुपयोग की संभावना प्रकट की है। इस समस्या के समाधान के लिए नए कानून में इसके दुरुपयोग करने वालों के लिए सख्त नियम बनाने की आवश्यकता है। जिससे कि वैवाहिक दुष्कर्म कानून का दुरुपयोग ना हो सके। बल्कि निश्चित उद्देश्य की प्राप्ति हो। जिससे कि समाज में व्यक्तिगत स्वतंत्रता और जीवन की रक्षा के पहलू की रक्षा की जा सके।
सामाजिक मामलों के चिंतक और आईआईएमसी में प्रशिक्षु पत्रकार प्रभाष रंजन ने कहा कि वैवाहिक दुष्कर्म को अपराध की श्रेणी में शामिल करने से विवाह नामक संस्था को खतरा नहीं है। अगर विवाहों का इतिहास देखा जाए तो इसका उद्देश्य सिर्फ़ सेक्स नहीं रहा है। और विवाह का पवित्र बंधन प्रेम, अंतरंगता, सामाजिक और राजनीतिक विकास जैसे जटिल उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए होता है। ऐसे में इससे विवाह नामक संस्था को कोई खतरा नहीं हैं।
वैवाहिक दुष्कर्म को अपराध मानने के नए अधिनियम बनाने से निश्चित रूप से समाज पर एक सकारात्मक दबाव बनेगा। और महिलाओं को सशक्त होने का अवसर मिलेगा। जिससे कि संविधान के अनुच्छेद 14 (कानून के समक्ष समानता) और अनुच्छेद 21 (व्यक्तिगत स्वतंत्रता और जीवन की रक्षा) के प्रावधानों की रक्षा हो सकेगी। इससे महिलाओं के सहायक से सहभागी होने के सिद्धांत को भी गति मिलेगी।
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