आखिर मोर ही क्यों बना राष्ट्रीय पक्षी


मोर, नाम सुनते ही आपके दिमाग में एक रंग-बिरंगे पंखों वाला खूबसूरत पक्षी की छवि बनती होगी। मोर पक्षियों का राजा होता है, इसके सिर पर एक ताज नजर आता है। जब यह पंख फैलाकर नाचता है तो देखने वाले मंत्रमुग्‍ध हो जाते हैं। ऐसा लगता है कि मोर ने रत्न-हीरे से जड़ित कोई पोशाक पहन रखी हो।

मोर हमारा राष्ट्रीय पक्षी है। 26 जनवरी 1963 को इसे देश का राष्ट्रीय पक्षी घोषित किया गया था। यह हमारे पड़ोसी देश म्यांमार का भी राष्ट्रीय पक्षी है। मोर 'फैसियानिडाई’ परिवार का सदस्य है, जिसका वैज्ञानिक नाम ‘पावो क्रिस्टेटस’ है। अंग्रेजी भाषा में इसे ‘ब्ल्यू पीफॉउल’ अथवा ‘पीकॉक’ कहते हैं। अरबी भाषा में इसे ‘ताऊस’ कहते हैं।

देश में इतने विविध प्रकार के पक्षी है, तो फिर राष्ट्रीय पक्षी मोर को ही क्यों घोषित किया गया? ऐसे सवाल हमारे मन में उठ सकते है। माधवी कृष्‍णन के 1961 में लिखे एक आर्टिकल में कहा गया था कि भारतीय वन्‍य प्राणी बोर्ड की ऊटाकामुंड में बैठक हुई थी। इस बैठक में सारस क्रैन, ब्राह्मि‍णी काइट, बस्‍टार्ड, और हंस के नामों पर भी चर्चा हुई थी। लेकिन इन सब में मोर का नाम प्रमुख था।

राष्ट्रीय पक्षी को घोषित करने के लिए जो नियम बनाए गए थे उसके अनुसार उस पक्षी को देश के सभी हिस्‍सों में मौजूद होना जरूरी था। इसके अलावा इसकी पहचान सभी से हो और यह पूरी तरह से भारतीय संस्कृति और परंपरा का हिस्सा होना चाहिए। मोर की सुंदरता और शिष्टता को देखते हुए इसे राष्ट्रीय पक्षी घोषित कर दिया गया था।

दुनिया भर में उड़ने वाले विशाल पक्षियों में से एक मोर है। नर मोर की लंबाई उसकी पूछ सहित लगभग साढ़े 5 फीट तक होती है, जिसमें उसकी पूंछ ही उसकी कुल लंबाई की तकरीबन 60 प्रतिशत होती है। ऊंचाई आमतौर पर 2 फीट होती हैं, लेकिन जब वे अपने पंख फैलाते हैं तो उनकी ऊंचाई बढ़ जाती है। एक वयस्क मोर का वजन 4 से 6 किलोग्राम होता है, जबकि मोरनी नर मोर से काफी छोटी, तकरीबन 1 मीटर लंबी होती है।

हिंदू धर्म में मोर की विशिष्ट मान्यता

मोर को हिंदू धर्म में पंछियों का राजा माना जाता है। यह भगवान शिव के पुत्र कार्तिकेय का वाहन है। भगवान श्री कृष्ण के मुकुट में लगा मोर पंख भी विशेष महत्व दर्शाता हैं। हिंदू धर्म में मोर को मारकर खाना महापाप समझा जाता है। मोर की लगभग उम्र 25 से 30 वर्ष तक होती है। रसखान जी एक सवैया में कहते है।

मोर के चंदन मौर बन्यौ दिन दूलह है अली नंद को नंदन।
श्री वृषभानुसुता दुलही दिन जोरि बनी बिधना सुखकंदन।
आवै कह्यौ न कछू रसखानि हो दोऊ बंधे छबि प्रेम के फंदन।
जाहि बिलोकें सबै सुख पावत ये ब्रजजीवन है दुखदंदन।।



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