शराब पीने की न्यूनतम उम्र निर्धारित करने की आवश्यकता



हरियाणा सरकार विचार कर रही है कि शराब पीने की न्यूनतम 25 से घटाकर 21 वर्ष कर दी जाएं। इससे पूर्व दिल्ली सरकार ऐसा कर चुकी है। कुछ राज्यों में शराबबंदी के बावजूद देश के अन्य राज्यों में शराब की बिक्री कानूनी रूप से हो रही है। 

पंजाब, हरियाणा, चंडीगढ़ और महाराष्ट्र में 25 वर्ष से कम उम्र लोगों के लिए शराब पीने की मनाही है। वहीं केरल में 2017 से पहले शराब पीने की न्यूनतम उम्र 21 साल थी, जिसे बाद में बढ़ाकर 23 साल कर दिया गया था। गोवा में शराब पीने की न्यूनतम उम्र 18 साल तय है। 

बिहार, गुजरात, नागालैंड, लक्षद्वीप और मिजोरम ड्राय स्टेट और केंद्रशासित प्रदेशों की सूची में आते हैं। इन राज्यों में शराब पर पूर्ण पाबंदी है। इसके अलावा मणिपुर के कुछ जिलों में भी शराब पर आंशिक प्रतिबंध है। वही बचे अन्य राज्यों में शराब पीने की न्यूनतम उम्र 21 वर्ष निर्धारित है।

देश के विभिन्न राज्यों में शराब पीने की विभिन्न न्यूनतम उम्र होने के कारण कई सारी समस्याएं प्रकट होती हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) की अल्कोहल एंड हेल्थ 2018 की रिपोर्ट के अनुसार, 2016 में भारत में शराब के विषाक्त प्रभाव के कारण 20 हजार से अधिक लोगों की मौत हुई है।

रिपोर्ट में कहा गया है कि देश में शराब की खपत 2005 और 2016 के बीच बढ़कर दोगुना हो गई है। अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) के सहयोग से सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय द्वारा किए गए एक अन्य सर्वेक्षण में कहा गया है कि भारत में लगभग 57 मिलियन लोगों को शराब पर निर्भरता के लिए उपचार की आवश्यकता है।

इसके अलावा किशोरों का एक बड़ा तबका शराब की लत में फंसकर अपना भविष्य तबाह कर रहा है। एक एनजीओ, कम्युनिटी अगेंस्ट ड्रंकन ड्राइविंग (सीएडीडी) के सर्वेक्षण के अनुसार, भारत में 23% लोग 18 साल की उम्र से पहले ही शराब पीना शुरू कर देते हैं। शोध के अनुसार शराब पीने की यह लत टीनेजर्स में मृत्यु और विकलांगता का एक प्रमुख कारण बन रही है।

वहीं अत्यधिक शराब पीने से लीवर को खतरा, उच्च रक्तचाप, मानसिक स्वास्थ्य समस्याएं, हृदय रोग, एनीमिया, डिमेंशिया और यहां तक कि अवसाद जैसे गंभीर स्वास्थ्य समस्याएं हो सकती हैं। यह रेस्पांस टाइम और रिफ्लेक्सेस में देरी की वजह से कार दुर्घटना, पानी में डूबने जैसा जोखिम बढ़ाता है। शराब के नशे में लोग अक्सर तर्कहीन व्यवहार करते हैं जो अपमानजनक व्यवहार-शारीरिक, यौन शोषण और वित्तीय दुरुपयोग जैसी सामाजिक समस्या को बढ़ाता है। 

उपरोक्त शराब के दुष्प्रभाव को देखते हुए एक समाज का नैतिक नियम बनता है कि शराब पर पूर्ण बंदी होनी चाहिए। संविधान का अनुच्छेद 47 भी कहता है, कि राज्य, अपने लोगों के पोषाहार स्तर और जीवन स्तर को ऊँचा करने और लोक स्वास्थ्य के सुधार को अपने प्राथमिक कर्तव्यों में मानेगा और राज्य, विशिष्टतया, मादक पेयों और स्वास्थ्य के लिए हानिकर ओषधियों के, औषधीय प्रयोजनों से भिन्न, उपभोग का प्रतिषेध करने का प्रयास करेगा।

सरल शब्दों में कहां जाएं तो अनुच्छेद 47 शराब पर पूर्ण बंदी की बात करता है। लेकिन अगर आज के समय में यह व्यवहारिक रूप से ना संभव हो तो शराब पीने के लिए एक परिपक्व उम्र का विधान ज़रूर होना चाहिए। केंद्र सरकार को संविधान में संशोधन करते हुए शराब को समवर्ती सूची में शामिल कर लेना चाहिए।  

इसके उपरांत पूरे देश में शराब पीने की न्यूनतम उम्र निर्धारित करने के लिए एक कानून बनाना चाहिए। भारत सरकार शराब पीने की न्यूनतम उम्र 21 या 22 वर्ष निर्धारित करने पर विचार कर सकती है। शराब को समवर्ती सूची में शामिल करने के और कई कारण हो सकते हैं, जैसे शराब को जीएसटी में शामिल करना आदि।

प्रशासनिक स्तर पर भी बहुत काम करने की आवश्यकता है। सरकार को पहचान पत्र के साथ शराब परोसने वाली शराब की दुकानों, बार और रेस्तरां में अनिवार्य आयु जांच के लिए मजबूत तंत्र स्थापित करना चाहिए। इसके अलावा सरकार को कोई व्यक्ति अधिकतम शराब कितना खरीद सकता है? इसका भी निर्धारण करना चाहिए।

पूरे देश में अगर शराब पीने की एक समान न्यूनतम उम्र निर्धारित की होती है। और उम्र सत्यापन का एक मजबूत तंत्र स्थापित किया जाता है तो निश्चित रूप से देश के करोड़ों किशोरों को शराब की बुरी लत से बचाया जा सकता है। और इससे ही एक स्वस्थ राष्ट्र का निर्माण संभव हो सकता है।



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