लाल बहादुर शास्त्री स्मृति भवन, नई दिल्ली का भम्रण; मैं धन्य हुआ


लाल बहादुर शास्त्री स्मृति भवन, 10 जनपद मार्ग नई दिल्ली गया। शास्त्री जी यहां अपने जीवन के 14 वर्ष गुजारे है। यह बंगला एक केंद्रीय मंत्री से प्रधानमंत्री तक के सफर का गवाह हैं। बड़ा आश्चर्य हुआ कि एक बड़े आदमी का एक छोटा सा बंगला। एक फिएट कार, वो भी लोन पर ली थी। जिसका कर्ज विधवा ललिता शास्त्री जी ने भी चुकाया था।

सहसा शास्त्री जी की स्मृतियाँ मन में कौंधने लगी। मुगलसराय से शुरू होकर ताशकंद तक की यात्रा की यादें आने लगी। हमने वह ऊनी कोट भी देखी जो पंडित नेहरू जी ने शास्त्री जी को गिफ्ट दिया था। वह कुर्सी भी देखी जिस पर शास्त्री जी बैठकर भारत-पाकिस्तान युद्ध के दौरान निर्णायक फैसले ले रहे थे। 


जय जवान, जय किसान के नारों को भी हमने महसूस किया। वो गेंहू की बालियाँ आज भी सुरक्षित है जो शास्त्री जी ने अपने बंगले में उगाई थी। युद्ध के दौरान पाकिस्तान के सेनानायक भारतीय नेताओं को ‘धोती प्रसाद’ कहकर मजाक उड़ाते थे। लेकिन इस छोटे से कद के आदमी ने लाहौर में भी जाकर अपनी सेना का मनोबल बढ़ाया। उनमें दुश्मनों से लड़ने की ताकत थी।

ताशकंद से शास्त्री जी का पार्थिव शरीर यहीं पर अंतिम दर्शन के लिए लाया गया था। इस भवन के बाहर वह बरामदा आज भी इसका गवाह है। लाल बहादुर शास्त्री जी का अस्थि कलश आज भी भवन में सुरक्षित है। शास्त्री जी की कहानी उनकी धर्मपत्नी ललिता शास्त्री के बिना अधूरी है।  शास्त्री जी के निधन के बाद 27 वर्षों तक वह इस बंगले में रही हैं। ललिता जी का ही मनोबल था कि शास्त्री जी यहां तक पहुंचे। ललिता जी का पूजा घर भी देखा, वो एक धर्मपरायण महिला थी।

शास्त्री जी के कई दैनिक उपयोग की वस्तुओं को भी देखने का अवसर मिला। उनके द्वारा लगाया गया बुश ट्री आज भी मैदान में सीना ताने हुए खड़ा है। वास्तव में यह बंगला शास्त्री जी की सादगी और विनम्रता का प्रतीक है। भारत माता के लाल भारत रत्न लाल बहादुर शास्त्री देश में अजर अमर रहेंगे। ऐसे महापुरुष कभी मरते नहीं है। हमेशा देशवासियों के दिल में रहते हैं।

- बिकास धर

टिप्पणियाँ

Unknown ने कहा…
बेहतरीन भाई जी
Neha Singh ने कहा…
Bahut badhiya likhe h