दुनियादारी: भारत में भीषण गर्मी के बीच, जर्मनी के बॉन शहर में एक बेहतर कल की तलाश जारी


नई दिल्ली, 14 जून: 
जर्मनी के बॉन शहर में दुनिया भर के कई देश एक बेहतर कल के लिए जलवायु प्रक्रिया पर चर्चा और सुधार हेतु बॉन जलवायु सम्मेलन में भाग ले रहे है। माना जा रहा है कि यह सम्मेलन COP27 की जमीन तैयार करेगा। 6 से 16 जून तक चलने वाले इस सम्मेलन का नेतृत्व COP के दो सहायक निकाय ही कर रहे है। वहीं भारत की राजधानी नई दिल्ली में पिछले कई दिनों से पारा 40 डिग्री को लगातार पार कर रहा है। इससे लोगों का दिन में निकलना दूभर हो गया हैं।

क्या है काॅन्फ्रेंस ऑफ पार्टीज़ (COP)? 

COP जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंश (UNFCCC) के अंतर्गत आता है। यह हर साल एक बैठक का आयोजन करता है। इसकी अंतिम बैठक COP26 ब्रिटेन के ग्लासगो शहर में नवंबर 2021 में आयोजित हुई थी। वहीं COP27 का आयोजन इस साल के अंत में मिस्त्र के शर्म अल-शेख शहर में आयोजित होना है। इसका गठन वर्ष 1994 में किया गया था। वही पहली बैठक 1995 में जर्मनी के बर्लिन शहर में हुई थी। 

COP के संबंध में UNFCCC इसका सर्वोच्च निर्णय लेने वाला प्राधिकरण है। इसने सदस्य देशों के लिए ज़िम्मेदारियों की एक सूची तैयार की है। जिसमें जलवायु परिवर्तन से सबंधित कई मुद्दे शामिल हैं। वहीं COP के अध्यक्ष का कार्यालय आमतौर पर पाँच संयुक्त राष्ट्र क्षेत्रीय समूहों अफ्रीका, एशिया, लैटिन अमेरिका और कैरिबियन, मध्य एवं पूर्वी यूरोप तथा पश्चिमी यूरोप व अन्य के बीच चक्रीय रूप से घूमता रहता है। हर बैठक की अध्यक्षता उस देश के पर्यावरण मंत्री करते हैं। 

बॉन जलवायु सम्मेलन

इस सम्मेलन में दुनिया भर के देशों ने जलवायु परिवर्तन वार्ता के लिए जर्मनी के बॉन शहर में अपने प्रतिनिधिमंडल भेजे हैं। माना जा रहा है कि इस जलवायु परिवर्तन सम्मेलन का उद्देश्य नवंबर में COP27 से पहले जलवायु परिवर्तन के खिलाफ प्रमुख घटनाक्रमों को चर्चा में लाने का है। बहरहाल, इस बैठक में विकासशील देशों ने जलवायु परिवर्तन के कारण हुए विनाश पर चर्चा करने के लिए अधिक समय की मांग की है। 

सम्मेलन का प्रमुख विषय है कि कैसे विकासशील देशों को जलवायु परिवर्तन से हो रही हानि और क्षति के संदर्भ में शमन और अनुकूलन के माध्यम से उनको मदद पहुंचाई जाए। भारत इस अंतरराष्ट्रीय मंच पर विशेष रुचि रखता है, कि जिससे वह पर्यावरण के अनुकूलन, हानि और क्षति तथा जलवायु पर चर्चा कर सकें।

वित्त ही सबसे बड़ा मुद्दा! 

इस सम्मेलन में भी वित्त ही सबसे बड़ा मुद्दा बनकर उभर रहा है। क्योंकि इस मामले में विकसित देशों ने निर्धारित लक्ष्य को पूरा करने में पूरी तरह विफल रहे है। विकसित देशों को 2020 तक जलवायु वित्त में 100 बिलियन डॉलर जुटाना था, लेकिन वह अभी तक जुटा नहीं पाएं है। और अब ऐसा माना जा रहा है कि इसकी 2023 से पहले पूरा होने की कोई संभावना नहीं है। 

इस जलवायु वित्त से केवल 20 प्रतिशत जलवायु अनुकूलन की ओर गया है जबकि 50 प्रतिशत जलवायु न्यूनीकरण की ओर है। वहीं संयुक्त राष्ट्र के एक समूह का अनुमान आश्चर्यचकित करने वाला है, इस समूह के अनुसार जलवायु वित्त की आवश्यकता तब से बढ़कर आज 5.8-5.9 ट्रिलियन डॉलर हो गई है। अब जरूरत है कि हमें एक नए वित्त लक्ष्य के तरफ ध्यान दिया जाए क्योंकि वर्तमान प्रतिज्ञाएं पूरी करने के लिए वित्त अपर्याप्त हैं। 

सारांश यह है कि जलवायु परिवर्तन शमन के लिए ग्लोबल वार्मिंग को 1.5 डिग्री तक सीमित करने का लक्ष्य तो है, लेकिन जलवायु अनुकूलन के लिए कोई लक्ष्य निर्धारित नहीं हैं। इस पर गहन विचार विमर्श करने की आवश्यकता है। दुनिया के विकसित और विकासशील देशों को भी जलवायु परिवर्तन के प्रति अपनी जिम्मेदारी निभाने के लिए पूरी प्रतिबद्धता दिखानी होगी।

- विकाश धर द्विवेदी 

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