दुनियादारी: सूखा का प्रकोप, रेगिस्तान का विस्तार, कैसे लगेगी रोकथाम?


नई दिल्ली, 15 जून: 
विश्व के विभिन्न देशों में 17 जून को प्रत्येक वर्ष विश्व रेगिस्तान एवं सूखा रोकथाम दिवस मनाया जाता है। इसका उद्देश्य अंतरराष्ट्रीय आपसी सहयोग से बंजर और सूखे के प्रभाव का मुकाबला किया जाएँ और जन जागरूकता को बढ़ावा देना है। यह दिवस वर्ष 1995 से लगातार बनाया जा रहा है। रेगिस्तान या मरुस्थलीकरण तब होता है जब उपजाऊ भूमि मानव गतिविधियों के कारण मिट्टी के अत्यधिक दोहन के कारण शुष्क हो जाती है। 

वर्ष 1994 में संयुक्त राष्ट्र महासभा ने बंजर और सूखे से जुड़े मुद्दे पर दुनिया का ध्यान दिलाने के लिए और सूखे तथा मरुस्थलीकरण का प्रकोप झेल रहे देशों में; मरुस्थलीकरण रोकथाम कन्वेंशन के कार्यान्वयन के लिए; विश्व मरुस्थलीकरण रोकथाम और सूखा दिवस बनाने की घोषणा की थी। इस दिवस का उद्देश्य सभी स्तरों पर मजबूत व सामुदायिक भागीदारी और सहयोग में निहित है। इस वर्ष इसकी थीम 'एक साथ सूखे से ऊपर उठना' (Rising up from drought together) हैं।

सूखा

विश्व में 23 प्रतिशत भूमि अब उत्पादक नहीं है, वहीं 75 प्रतिशत भूमि में ज्यादातर भूमि को कृषि के लिए उसकी प्राकृतिक अवस्था से बदल दिया गया है। और उसे मानव ने नए रूप में डाल दिया है। वर्तमान में भूमि उपयोग के मामले में मानव इतिहास में किसी भी समय की तुलना में काफी तेजी आई है। माना ये जा रहा है कि पिछले 50 वर्षों में भूमि के दोहन में सबसे अधिक तेजी आई है। जमीन पर मानव की गतिविधियों के बढ़ने के कारण सूखे में इज़ाफा हुआ है। 

विश्व मौसम विज्ञान संगठन ने पिछले सप्ताह ही भारत सहित पूरी दुनिया को चेतावनी दी है कि बदलते मौसम से आने वाले समय में सूखा उनके लिए एक बड़ी चुनौती हो जायेगी। वहीं डब्ल्यूएमओ ने कहा कि हॉर्न ऑफ अफ्रीका और दक्षिण अमेरिका में चल रहा है सूखा, दक्षिण पूर्व एशिया और ऑस्ट्रेलिया में औसत से अधिक वर्षा और औसत से अधिक अटलांटिक तूफान के मौसम की भविष्यवाणी ला नीना से जुड़ी हुई है।  

रेगिस्तान

मरुस्थल या रेगिस्तान भी कई प्रकार के होते हैं; जैसे पथरीले मरुस्थल में कंकड़ पत्थर से युक्त भूमि पाई जाती है। मरुस्थल का विस्तार भारत में राजस्थान प्रदेश के थार का रेगिस्तान दबे पांव अब अरावली पर्वत की दीवार पार कर पूर्वी राजस्थान के जयपुर, अलवर और दौसा जिला की ओर बढ़ रहा है। भारत में अब तक 3000 किमी लंबे रेगिस्तानी इलाकों को उत्तर प्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल तक फैलने से अरावली पर्वत रोकती है। 

पिछले कुछ वर्षों से वैध-अवैध खनन के चलते कई जगह से भूमि का सफाया हो रहा है और वहाँ दरारों और अंतरालाें के बीच से रेगिस्तान पश्चिम से पूर्व की ओर बढ़ रहा है। ऐसे में यह अनुमान लगाया जा रहा है कि आगे यह हरियाणा, दिल्ली और यूपी तक पहुंच सकता है। लगातार बढ़ रहा मरुस्थल एक गंभीर चिंता का विषय है। इस पर और अधिक चर्चा की आवश्यकता है। भूमि और सूखा किसी भी अन्य प्राकृतिक आपदा की तुलना में अधिक लोगों की मृत्यु और अधिक लोगों को विस्थापित करने के लिए जाना जाता है। 

कैसे लगेगी रोकथाम? 

भारत सहित पूरी दुनिया को बंजर भूमि को कैसे उपजाऊ बनाया जाएँ? इस पर काम करना चाहिए। भूमि को उपजाऊ बनाने में वैज्ञानिकों और तकनीकी का सहारा लिया जा सकता है। इस संदर्भ में भारत सरकार रेगिस्तान एवं सूखा रोकथाम के लिए कई योजनाओं पर काम कर रही है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2030 तक 2.1 करोड़ हेक्टेयर बंजर जमीन को उपजाऊ बनाने के अपने लक्ष्य को बढ़ाकर 2.6 करोड़ हेक्टेयर कर दिया है। इससे पर्यावरण की रक्षा तो होगी ही साथ ही उपजाऊ भूमि का विस्तार भी होगा। 

इसके अलावा समाज को भी कुछ छोटे, खुद कर सकने वाले योग्य ज़रूरी कदम उठाए जाने चाहिए। वर्तमान में आवश्यकता है कि प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण की ओर विशेष ध्यान दिया जाए, जिसमें मुख्यतः धूप, खनिज, वनस्पति, हवा, पानी, वातावरण, भूमि तथा जानवर आदि शामिल हैं। संसाधनों का अंधाधुंध दुरुपयोग पर लगाम लगाई जाएँ। शहरीकरण की तेज प्रक्रिया और निर्माण कार्य को भी पर्यावरण के प्रति अनुकूल करना होगा। इस विकट चुनौती से तभी निपटा जा सकता है जब सरकार के साथ-साथ समाज भी अपना नजीरिया बदले। 

- विकास धर द्विवेदी





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