अपनी बात: स्वामी विवेकानंद की पुण्यतिथि पर याद, अध्यात्म-विद्या और भारतीय दर्शन दुनिया के लिए आवश्यक
शिकागो का भाषण; भारत में भारतीयता का बोध; नवजागरण के अग्रदूत स्वामी विवेकानंद आज ही हम लोगों को छोड़कर चले गए थे.
मैंने बचपन में आपको सुना- उठो, जागो और तब तक मत रुको, जब तक कि अपने लक्ष्य तक न पहुंच जाओ।' तब तो शायद मैं इसका मतलब न समझ पाया हूँ. लेकिन अब यह मेरे जीवन का सार हो गया है.
सामाजिक, सांस्कृतिक और धार्मिक गतिविधियों के साथ आर्थिक गतिविधियों में भी आपका यही मंत्र लागू होता है। मेरे अमेरिकी भाइयों और बहनों! उद्बोधन के साथ अमेरिका में आप ने भारत का डंका बजाया. इतिहास हमेशा याद रखेगा.
शिकागो में आपके भाषण से भारत की धार्मिकता को विश्व पर एक नया मंच मिला. आपने हिंदुत्व को एक नई पहचान दी. हमें आप पर गर्व है. भारत हमेशा आपको याद करेगा.
1863 में जन्में. भारत के लिए हमेशा सोचते; भारत के लिए हमेशा जीने की तलब रखने वाले आप; कब नरेंद्र दत्त से स्वामी विवेकानंद हो गए यह तो पता ही नहीं चला. परंतु भारत की गौरव गाथा अमर हो गई.
आपके गुरु स्वामी रामकृष्ण परमहंस की आपने जो सेवा की; आज वह हम सभी युवाओं के लिए प्रेरणा का स्रोत हैं. गुरुदेव अत्यंत रुग्ण हो गए; उनके कई शिष्य ही घृणा करने लगे. लेकिन आप डटे रहे. नमन है आपको.
भारत माता की सेवा के लिए आपने 25 वर्ष की अवस्था में गेरुआ वस्त्र धारण कर लिया. भारतवर्ष की पैदल यात्रा पर निकल पड़े. 1893 में अमेरिका में हो रहे विश्व धर्म सम्मेलन में आपने जो भाषण दिया. उससे अमेरिका सहित यूरोप के लोग भी भारत के शौर्य से चकित रह गए.
आपने कहा था अध्यात्म- विद्या और भारतीय दर्शन के बिना विश्व अनाथ हो जाएगा. यही वह विचार है जिसके जरिए भारत दुनिया में विश्व गुरु बनेगा. जय होगी.. जय जय कार होगी..
आपने युवाओं के लिए एक बार संदेश देते हुए कहा था- एक विचार उठाओ, उस एक विचार को अपना जीवन बना लो- उसके बारे में सोचो, उसके सपने देखो, उसी विचार पर जिओ. मसि्तष्क, मांसपेशियां, नसों और शरीर के प्रत्येक भाग को इस विचार से भरा होने दो, और बस हर दूसरे विचार को अकेला छोड़ दो, यह सफलता का मार्ग है.
आपके पिता पश्चिम विचारधारा से प्रभावित थे, लेकिन आप नहीं; यह आपके असामान्य होने को सिद्ध करता है. आपने पश्चिमी, भारतीय दोनों दर्शन का गहन अध्ययन किया. ईसाई से हिंदू धर्म में परिवर्तित हो गए. उसके बाद भारतीय गौरव को ही आपने प्राथमिकता दी. यह अतुलनीय है.
आपके बारे में नोबेल पुरस्कार विजेता रविंद्रनाथ टैगोर ने एक बार कहा था, यदि आप भारत को जानना चाहते हैं, तो विवेकानंद का अध्ययन करें. उसमें, सब कुछ सकारात्मक है और कुछ भी नकारात्मक नहीं है.
टैगोर जी की यह बात मुझे बहुत याद आती है. जितना बड़ा संघर्ष होगा जीत उतनी ही शानदार होगी: अगर मनुष्य आपको समझ जाए तो उसका कल्याण हो जाएगा. वह धन्य हो जाएगा.
स्वामी रामकृष्ण मिशन की जो शुरूवात आपने की थी. वह आज भी जारी है. आप ने भारत के गौरव को देश देशांतर में उज्जवल करने का सदा प्रयास किया. और आज के 120 साल पहले आज ही के दिन आपने देह त्याग दिया. भारत ने अपना एक अमूल्य हीरा खो दिया. भारत आज दुखी है.
लेकिन आप पूरी दुनिया में अमर हैं. आज भी जब हम आपको पढ़ते हैं तो दिलों में महसूस करते हैं. आपको मेरा प्रणाम है! शत शत नमन हैं... विनम्र श्रद्धांजलि.
- आपका विकास धर
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