दक्षिण प्रवास भाग-1: विंध्याचल और सतपुड़ा पहाड़ियों के आगे सतत यात्रा

4 दिसंबर, 2023: किसी राह का राही होना, अपने आप में बड़ी बात है। मुझे जब भी किसी राह का राही होने का मौका मिलता है तो राही बन जाता हूँ। भारत यात्रा का विचार बड़े दिनों से मन में कौंध रहा था, थोड़ा-बहुत हुआ है थोड़ा और करना है। 

मौका मिला, दस्तूर आया। हम निकल पड़े। दिल्ली की सर्द किसे नहीं परेशान करती है? इसी का परिणाम हुआ कि हम दक्षिण भारत की ओर निकल पड़े, सबसे अंतिम छोर पर। अंतिम तट पर। अंतिम बिंदु पर। दक्षिण के कोने पर खड़े होकर वहाँ से भारत को निहारने का मन है। 

                         दिल्ली रेलवे स्टेशन पर

दिल्ली से यात्रा ट्रेन के जरिए शुरू हुई। लगभग 3 हजार किलोमीटर की। मैं अपने जीवन में इतनी लम्बी ट्रेन यात्रा पहली बार कर रहा हूँ। धरती की लंबाई 12,713 किलोमीटर और चौड़ाई 12,756 किलोमीटर है. इस हिसाब से हमारी यात्रा पृथ्वी के लंबाई या चौड़ाई के संदर्भ में एक चौथाई के बराबर है।  

ट्रेन मैदानी क्षेत्रों से निकलते हुए बुंदेलखंड पहुँची। थोड़ा पानी, सूखी झाड़ियां के ढेर और हल्के हरे घास के मैदानों को देखते हुए हम आगे बढ़े। मध्य भारत की ओर। जहां शुरुआती दौर में कहीं-कहीं पहाड़, बड़े-बड़े घास के मैदान और उन मैदानों पर चरवाहे अपने पशु को चराते हुए दिखे।

इन सब के बीच हम दक्षिण भारत की ट्रेन में है। यह बार-बार तेलुगू और तमिल बोलते हुए लोगों को देखकर लगता है। ट्रेन में दक्षिण की नई पीढ़ी को छोड़ दें तो पुरानी पीढ़ी अभी भी धोती पहनने में विश्वास रखती है, भले ही कितनी कड़कड़ाती ठंड क्यों ना हो। अगर घर का मुखिया गरीब परिवार से है तो उत्तर भारत में जिसे अंगोछा कहा जाता उसी को धोती के रूप में पहना जाता है। 

ट्रेन एक्सप्रेस वाली है तो उसकी रफ्तार भी बढ़ रही थी। मध्य भारत में प्रवेश करते ही विंध्याचल और सतपुड़ा की पहाड़ियों से सामना हुआ। बड़ी-बड़ी और गहरी खाईयाँ भी दिखने लगी। हिमालय से भी ज्यादा पुरानी इन पहाड़ियों का निर्माण आग्नेय चट्टानों से हुआ है। विंध्याचल पर्वत श्रेणी, भारत को उत्तर और दक्षिण भारत में बांटती है। नर्मदा नदी भी दिखी, हमने उसको प्रणाम किया और दक्कन पठार की तरफ बढ़ गए।

टिप्पणियाँ

Vikahdhardrivedi ने कहा…
बहुत सुंदर👌👌