8 दिसंबर, 2023: कन्याकुमारी बीच पर महासागरों का त्रिवेणी संगम स्थित है, जहाँ बंगाल की खाड़ी, अरब सागर और हिन्द महासागर का मिलन होता है। विदित है कि नदियों का संगम प्रयागराज है। जहां पर तीनों महासागर भारत माता के चरण को दिन रात अनवरत पखारते रहते हैं। यह चरण वंदना दुनिया के विहंगम दृश्यों में से एक है। जिसे देखकर सिर्फ़ भावों से महसूस किया जा सकता है।
इन सब में भारत माता मंदिर और स्वामी विवेकानंद ट्यूटोरियल एग्जिबिशन काफी आनंददायक रहा। भारत माता की विशाल प्रतिमा और सामने भारत के नक्शे के अतुल्यनीय संगम का विहंगम दृश्य देखने को मिला। स्वामी विवेकानंद के त्याग, सेवा भावना और स्वामी के भारतीय संस्कृति को लेकर विचार हम सभी लोगों के लिए प्रेरणा स्रोत है। जिनसे बहुत कुछ सीखा जा सकता हैं।
40 डिग्री के तापमान में उपरोक्त जगहों को घूमना किसी आराधना से कम न था, भले पैर जवाब दे रहे थे लेकिन मन नहीं भरा था। हम बढ़ रहे थे और लगातार चल रहे थे। कुछ जानने को कुछ समझने को। सतत...निरंतर...जैसे त्रिवेणी संगम भारत माता की निरंतर आराधना करता रहता है। यह भारत माता के प्रति सिर्फ देशवासियों का ही नहीं बल्कि प्राकृतिक तत्वों का भी प्यार है।
इसके बाद फ्रॉम एक्वा म्यूजियम गया। वहाँ पर मछलियों के लालन-पालन और पोषण प्रकिया को जाना। सुनामी स्मारक भी गया। इसका निर्माण उन लोगों की याद में किया गया है जो 2004 में हिंद महासागर में आए भूकंप और सुनामी के इसके प्रकोप में आ गए थे।
कैथोलिक समाज के 'अवर लेडी ऑफ रैनसम चर्च' भी गया। जिसकी बनावट को देखकर काफी अच्छा लगा। यह कन्याकुमारी बीच के पास ही है। किसी दूसरी संस्कृति का कैसे भारतीयकरण हो जाता है? इसे रैनसम मैरी के पोशाक से ही समझा जा सकता है। झंडा मस्तूल और तट से चर्च का दृश्य काफी लुभावना है। अंदर प्रार्थना के दौरान असीम शांति का भाव उत्पन्न हुआ।
सबसे आखिरी में हम गांधी मंडपम गए। इसमें महात्मा गांधी की राख पर बनाया गया एक मंडप है। यह हॉल 1956 में बनाया गया था। इस हॉल में केंद्रीय पिंजरा 79 मीटर ऊंचा है। यह गांधी के युग को दर्शाता है। हर साल 2 अक्टूबर को गांधीजी के जन्मदिन पर सूर्य की किरणों को उस स्थान पर पड़ने की व्यवस्था की गई है जहाँ गांधीजी की राख रखी गई है।
महात्मा गांधी ने दो बार कन्याकुमारी का दौरा किया था। 1925 में और फिर 1937 में। 1948 में उनके निधन के बाद, उनकी राख को 12 अलग-अलग कलशों में रखा गया ताकि उन्हें देश के विभिन्न हिस्सों में स्थानांतरित किया जा सके। इनमें से एक कलश कन्याकुमारी लाया गया। फिर उसे समुद्र के पानी में विसर्जित कर दिया गया। बाद में उसी स्थान पर महात्मा गांधी स्मारक या गांधी मंडपम बनाया गया।
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