दक्षिण प्रवास भाग- 6: रामेश्वरम के कण-कण में राम -1


9 दिसंबर, 2023: कन्याकुमारी से लगभग 350 किलो मीटर पूर्व में रामेश्वरम जिसे तमिल भाषा में 'इरोमेस्वरम' कहते है। रामेश्वरम तीर्थ रामनाथपुरम जिले में स्थित है। रामेश्वरम का एक भी कोना ऐसा नहीं है जो राम से संबंधित न हो। सब में राम। सब के राम। यहाँ हर मंदिर, स्मृति और विरासत प्रभु श्री राम से संबंधित हैं। सब राममय है। 


हमने सबसे पहले श्री रामनाथस्वामी मंदिर जाने का प्लान बनाया। लेकिन वहाँ जाना इतना आसान नहीं था क्योंकि उससे पहले दो जगह स्नान करना था। पहले हमने बंगाल की खाड़ी और हिंद महासागर के संगम में खारे पानी से स्नान किया। फिर सूर्यदेव की प्रार्थना करने के उपरांत हम मुख्य रामेश्वर मंदिर पहुंचे। जिसके चार द्वार बने हुए थे। वहाँ पर सबसे पहले हमने 22 तीर्थ कुंडों में स्नान किया। इन तीर्थ कुंडो की संख्या 25 बताई जाती है लेकिन यह वर्तमान में सिर्फ 22 तीर्थ कुंड ही है। 

इन तीर्थ कुंडो का पानी बहुत मीठा होता है। यह माना जाता है कि इन तीर्थ कुंडो में स्नान करने के बाद मानव के सारे पाप धुल जाते हैं। सभी कुंडो का जल देश के विभिन्न तीर्थ स्थानों से लाया गया है। स्नान की प्रक्रिया बड़ी रोचक है। वैज्ञानिक रूप से इन कुंडो का पानी‌ रोग निरोधक है। जो स्वास्थ्य के लिहाज से बहुत ही उत्तम है। 


इसके बाद हम श्री रामनाथ स्वामी के दर्शन किए, लड्डूओं का प्रसाद मिला। 'मन में राम, तन में राम' के भाव से मन भर गया। माना जाता है कि यहां भगवान राम ने शिवलिंग की स्थापना श्रीलंका चढ़ाई के समय भगवान शंकर की आराधना हेतु की थी। यह भारत के चार धामों में एक है, और ज्योतिर्लिंगों में भी इसे शामिल किया गया है। 


रामनाथस्वामी मंदिर में दर्शन के उपरांत हम लोग धनुषकोडी के लिए निकले। रामेश्वरम से दक्षिणपूर्वी कोने में स्थित यह एक भूतपूर्व नगर है। यह पाम्बन से दक्षिणपूर्व में और श्रीलंका में तलैमन्नार से 24 किलोमीटर (15 मील) पश्चिम में स्थित है। यहाँ से राम सेतु पुल का प्रतीकात्मक रूप और श्रीलंका के मुख्य भूमि को दूरबीन से देखा जा सकता है। ‌जिसकी दूरी यहाँ से मात्र 18 किलोमीटर है। 

धनुषकोडी नगर 1964 रामेश्वरम चक्रवात में ध्वस्त हो गया था और इसे फिर नहीं बसाया गया। धनुषकोडी और भारत की मुख्यभूमि के बीच पाक जलसंधि है। भारत सरकार यहाँ तक फिर से रेलवे सेवा शुरू करने के बारे में पुनः विचार कर रही है। अभी फेरी वाले ही दुकान लगाने रामेश्वरम से 25 किलोमीटर दूर धनुषकोडी आते हैं। और वे शाम को जल्दी-जल्दी चले जाते हैं। 

यहाँ समुद्र तट का मुख्य आकर्षण राम सेतु दृश्य बिंदु है, जिसे एडम ब्रिज के नाम से भी जाना जाता है , जिसके बारे में कहा जाता है कि इसका निर्माण भगवान राम के लिए वानरों (बंदरों) की सेना द्वारा किया गया था। स्थल भाग की समाप्ति पर धनुषकोडी में राष्ट्रीय चिह्न व वापसी घुमाव प्रतीक बना हुआ है। 


एक कथा और प्रचलित है कि जब माता सीता जी को लंका से वापस लाया गया और विभीषण को लंका का नया राजा घोषित किया गया और राम चन्द्र जी वापस जाने लगे तो विभीषण ने कहा कि प्रभु इस रामसेतु को आप नष्ट कर दीजिये वरना कोई भी लंका में कभी भी आ जा सकता है। उसके बाद राम ने अपने धनुष के एक सिरे से सेतु को तोड़ दिया और इस प्रकार इसका नाम धनुषकोडी पड़ गया।


आते जाते समय रास्ते विरान मिलेंगे, हालांकि कहीं-कहीं चावल मछली की कुछ दुकानें मिलती है। ‌धनुषकोडी नगर के कुछ अवशेष और रेलवे स्टेशन के क्षतिग्रस्त बिल्डिंग देखी जा सकती है। बताया जाता है कि सुनामी के बाद रेलवे लाइन रेत में दब गया। अधिकांश लोग रात होने से पहले ही क्षेत्र छोड़कर चले जाते हैं।

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