11 दिसंबर, 2023: जैसे जीवन के कुछ किस्से अनसुलझे हुए होते हैं, सच तो यह है कि हम उनका समाधान भी नहीं चाहते। क्योंकि वह आनंद खत्म हो जाएगा जो अनसुलझे हुए किस्सों या रिश्तों में है। ठीक उसी प्रकार यात्रा में भी कुछ अनसुलझे किस्से रह जाते हैं। जिनका समाधान मिल भी जाए तो भी सही न मिले तो भी सही है।
देवी कन्याकुमारी मंदिर और सुचिंद्रम मंदिर में दर्शन के दौरान शर्ट और बनियान निकालने को कहा गया। हमने उतारा भी। इसके अलावा कई मंदिरों में पुरुषों के लिए ऊपर से नग्न होना अनिवार्य है, तभी उनको ऐतिहासिक परंपरा के अनुसार दर्शन कराया जा सकता है। यह मेरे लिए बड़े आश्चर्यजनक रहा क्योंकि ऐसा पहले कभी नहीं हुआ है। ऐसा क्यों?
दक्षिण भारत की कई महिलाओं को पूर्ण रूप से गंजा देखा। उनके सिर पर एक भी बाल नहीं थे। इसे किसी रोग का प्रसार नहीं कहा जा सकता है क्योंकि वे पूर्ण रुप से स्वस्थ्य नजर आ रही थी। यह कोई परंपरा यह नई संस्कृति का हिस्सा है या फिर कुछ और? इस बारे में जानने और चर्चा करने की आवश्यकता है।
रामेश्वरम में जब हम लोग समुद्र में स्नान करने गए तो देखा कि बंगाल की खाड़ी एकदम शांत है और हिंद महासागर हिलोरे मार रहा है। यहाँ पर इन दोनों महासागरों का संगम है। फिर भी स्नान करने लायक दशाएँ है। लेकिन किन समुद्री कारणों से ऐसा हो रहा है? यह भी जानने योग्य है।
सबसे हास्यजनक स्थित तब बनी जब हम रामेश्वरम धाम यात्रा पूरी करने के लिए अंतिम मंदिर श्री नाग नादर मन्दिर पहुंचे। इस मंदिर के पुजारी लखनऊ के थे। जब हम निकलने लगे पुजारी ने हम लोगों को एक-एक रुद्राक्ष में भभूत लगाकर दिया, और कहा कि रामेश्वरम भगवान से अगर कोई प्रार्थना करनी हो तो करो। मिन्नत पूरी होगी।
सहसा मजाक में मैंने एक दोस्त की शादी की मनोकामना की इच्छा पुजारी को बता दिया। पुजारी ने इसे गंभीरता से लेते हुए बाकायदा नाम पूछ कर संबंधित मंत्र का जाप करते हुए आवश्यकतानुकूल एक साल के अंदर शादीशुदा होने का आशीर्वाद दे दिया। तब से उस बेचारे की लंका लगी हुई है। अब मुझसे ये दुख देखा नहीं जा रहा है।
इन्हीं सब किस्सों और यादों से मन भरा जा रहा है। लेकिन अब समय आ गया कि कर्म भूमि की ओर चला जाए। कुछ और कर्म किया जाए। पूरे दक्षिण प्रवास यात्रा में बहुत कुछ जाने सीखने को मिला है। जैसे नारियल कितना कठोर होता है, लेकिन उसके अंदर मीठा जल, और मलाई कितना स्वादिष्ट लगता है। ठीक उसी प्रकार कठोरता में सौम्यता छिपी हुई होती है।
दक्षिण समाज के लोग सौम्यता से भरे हुए हैं। यह मुझे पूरी दक्षिण प्रवास यात्रा के दौरान महसूस होता रहा है क्योंकि ऐसे कई मौके आए जब हमें इनके सहयोग की आवश्यकता पड़ी। और उन्होंने बगैर किसी दोराव के बढ़ चढ़कर मदद की।
चाहे एक छोटा सा बच्चा हो, युवा हो, महिला हो या फिर पौढ़; सब ये बात जानते हुए कि ये लोग यहाँ से अनजान हैं इस बात का कोई फायदा नहीं उठाया। जो किसी एक बेहतर समाज की निशानी है। दक्षिण के लोगों की बंधुत्व भावना की जितनी प्रशंसा की जाए उतनी कम है। दक्षिण भारत की संस्कृति की विरासत को बरकरार रखने में और शिखर तक पहुंचने में यहाँ के लोगों का बड़ा महत्वपूर्ण योगदान रहा हैं।
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