दो न्यूज़पेपर खरीदने के बाद मैंने पहला सवाल पूछा, आपको ठंड नहीं लगती? "नो" उन्होंने बड़ी शालीनता के साथ जवाब दिया। अब बातचीत का सिलसिला शुरू हुआ तो मैंने सवालों का माध्यम हिंदी चुना तो वह इंग्लिश में धड़ाधड़ जवाब देते रहे।
आत्मनिर्भरता क्या होती है? उनसे बढ़कर कहीं और नहीं सीखी जा सकती है। करोल बाग में अपना किराये का मकान लगाने के बावजूद जेब खर्च के लिए इस उम्र में; अखबार बेचना आत्मनिर्भरता की बड़ी मिसाल है। इसके साथ ही रिटायरमेंट की कोई उम्र नहीं होती है। यह भी सीख मिली।
मेरा भी मानना है कि मानव को अंतिम वक्त तक काम करते रहना चाहिए। जीवन में रिटायरमेंट दो बार नहीं, पूर्ण रूप से एक बार ही रिटायरमेंट होनी चाहिए। जिसकी बाद की स्थिति का हम लोगों को अंदाजा नहीं होता है। वही सच्ची रिटायरमेंट है, और इससे यह सिद्ध होता है कि जगत में कुछ भी परमानेंट नहीं है।
आमतौर पर नौकरी पेशा वर्ग में 60 वर्ष के बाद रिटायरमेंट माना जाता है। लेकिन उसके बाद जो बुजुर्गों के स्थिति होती है वह भारतीय समाज में बड़ी दयनीय है, वह अकेलेपन के शिकार हो जाते है, छोटे बच्चे भी बात करने से कतराते हैं।
इस समस्या का समाधान वैश्विक सांस्कृतिक मूल्यों में परिवर्तन और भारतीय मूल्य में समाजस्य तथा अवधेश जी के कथन "डूइंग समथिंग इज बेटर देन डूइंग नथिंग" (खाली रहने से अच्छा है कुछ करते रहना) में छिपा हुआ है। उम्मीद की किरण इस बात की ओर है, कि 'कोई तो आता रहेगा' और अवधेश जी का 'समथिंग बेटर' होता रहेगा। सहसा मुझे याद आता है श्रीकांत वर्मा की ये पंक्तियाँ!
"चाहता तो बच सकता था
मगर कैसे बच सकता था
जो बचेगा
कैसे रचेगा"
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