डायरी से: राममय अयोध्या

12 फ़रवरी, 2024: आठ वर्ष बाद प्रभु श्री राम का बुलावा आया। इससे पहले कई बार अयोध्या आने का अवसर मिला है। मेरा घर गोंडा में पास ही है तो जाने का अवसर मिलता रहता है, लेकिन बड़े दिनों बाद एक नये अध्याय के अयोध्या में आना हुआ। पूरी अयोध्या राममय में ऐसी रंगी है कि 500 वर्षों के पिछले इतिहास को तरोताजा कर रही है। 

सीताराम और जय श्री राम के नारों, लहराता हुआ रामनामी झंडा, ढोल नगाड़ो सहित विभिन्न वाद्ययंत्रों से भजन कार्यक्रम और रामोत्सव की चारों तरफ यहाँ धूम है। भक्तों में गजब का उत्साह, उमंग और उल्लास है, चारों तरफ राम नाम की धूम है। चाहे लता मंगेशकर चौक हो या हनुमानगढ़ी या राम जन्मभूमि परिसर सब जगह राम ही राम छाए हुए हैं। 

धर्मपथ हो या राम पथ या फिर भक्ति पथ; सब पर राम भक्त ही नजर आ रहे हैं। सरयू नदी का चाहे नया घाट हो या पुराना घाट हो भक्तों की भीड़ यहां हर समय लगी रहती है। लोगों के चेहरे पर एक अलग ही तरह का भक्ति का भाव प्रकट होता है, जो राम के रमेति को सार्थक प्रतीत करता है। 

रामलला का भव्य और दिव्य रूप अद्भुत और अलौकिक है, पाँच साल के बालक के रूप में भगवान राम के बाल सखापन की अद्भुत छवि तराशी गई है। मंदिर परिसर विशाल है, आठ बड़े हाल के बाद रामलला विराजमान है। जिनके दर्शन करने से, कबीर के शब्दों में कहें तो-

सबमें रमै रमावै जोई, ताकर नाम राम अस होई।

राम नाम शब्द इतना व्यापक है कि साहित्य में परमात्मा के लिए इसके समकक्ष केवल एक शब्द ही आता है, जिसे वासुदेव कहते हैं। रमते इति राम: "जो कण- कण में रमते हों उसे राम कहते हैं।" इसी रामनामी भाव का इतिहास अयोध्या हैं। जहां सबमें राम, सबके राम के साथ कण-कण में राम विराजमान हैं।

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