14 मार्च, 2024: पिछले पांच दिनों से बिहार राज्य के विभिन्न शहरों, नगरों, स्मारक स्थलों, म्यूजियमों और विभिन्न प्रकार के धार्मिक स्थानों पर जाना हुआ. बिहार जाने का मन जब से किताबों में नालंदा विश्वविद्यालय और बोधगया के बारे में, बचपन में पढ़ा; तब से था. संयोग नहीं बन पा रहा था लेकिन बिहार के एक मित्र के अथक प्रयासों से बिहार आने का अवसर मिला.
बिहार आने से पहले मन में बहुत सारे सवाल थे. क्या आजादी के बाद बिहार विकास में पीछे छूट गया? क्या वही बिहार है जो हमें दिल्ली और दिल्ली के बाहर देखने को मिलता है? या फिर यह वही बिहार है जिसने दुनिया को लोकतंत्र समझाया। जिसने शिक्षा की अलग आर्यावर्त समेत पूरे विश्व को समझाया या फिर भारत को 21वीं सदी में महाशक्ति बनाने में सॉफ्ट पावर के रूप में 'शांति का मंत्र' देने वाला बिहार है। आखिर असली बिहार क्या है?
कभी आर्यावर्त का केंद्र रहने वाला पाटलिपुत्र, सीता माता की धरती, बौद्ध और जैन धर्म की तपोभूमि, मिथिलांचल की सभ्यता और संस्कृति या फिर आज का तेजी से विकास करता हुआ बिहार। डॉ एपीजे अब्दुल कलाम अपनी किताब टर्निंग पॉइंट में लिखते हैं कि बिहार पर अगर थोड़ा सा ध्यान दे दिया जाए तो क्षमता का असीमित प्रदर्शन करेगा. इसी किताब में वे बिहार के ऐतिहासिकता और संस्कृति की भूरि-भूरि प्रशंसा करते हैं.
भिक्षुओं के विहारों की नगरी बिहार में जगह-जगह बौद्ध और जैन धर्म से विभिन्न मंदिर, मठ और अन्य संबंधित स्थान मिलते हैं. आज भी इन स्थानों के आसपास म्यांमार, थाईलैंड, वर्मा, जापान, चीन और दक्षिण एशियाई तथा दुनिया भर के अन्य देश के लोग भी लाखों की संख्या में बिहार में रहते हैं. इन्हीं लोगों द्वारा बौद्ध धर्म से संबंधित अपने देश के अनुसार विभिन्न प्रकार के मंदिर भी बनाए गए हैं. कुछ लोग तो यहीं आकर ही बस गए हैं.
बोधगया
1990 के दशक में महाबोधि मंदिर को विश्व विरासत स्थल समूह में शामिल कर लिया गया. मंदिर के ठीक पीछे महाबोधि वृक्ष है जहाँ पर भगवान बुद्ध को ज्ञान की प्राप्ति हुई थी. मैं उस जगह को बड़ी देर तक निहारता रहा, उस दौरान; जो मैं अनुभव कर रहा था उसको लिखने के लिए मेरे पास शब्द नहीं हैं. ठीक यही हाल मंदिर परिसर के अंदर भगवान बुद्ध की दिव्य प्रतिमा को देखकर और बाहर आकर विहार परिसर में घूमने के दौरान भी महसूस किया.
गया से 10 किलोमीटर दूर महाबोधि मंदिर है. मंदिर का विशाल परिसर है. तथागत बुद्ध को मंदिर के अंदर फूल, कैंडल और इसके साथ चढ़ावे के रूप में बिस्किट के कई सारे पैकेट भी चढ़ाए जाते हैं. बाद में इसे बाहर बैठे भिक्षुओं को दे दिया जाता है. बौद्ध वृक्ष के दोनों तरफ हजारों की संख्या में बौद्ध धर्म को मानने वाले भिक्षुगान ध्यान-साधना में दिन-रात मग्न रहते हैं.
विभिन्न देशों के बच्चों के समूह परिसर में अलग-अलग स्थानों पर बैठकर बौद्ध की ध्यान-साधना में मग्न रहते हैं. इनके चेहरे पर एक आध्यात्मिक शांति का भाव प्रकट होता है. खासकर मुझे ये बात बहुत पसंद आई कि इन बौद्ध भिक्षुओं में महिलाओं की संख्या सर्वाधिक थी. जबकि तथागत बौद्ध संगत में महिलाओं को प्रवेश देने के विचार में नहीं थे लेकिन बाद में उन्होंने अनुमति दी गई.
बौद्ध धर्म में चार आर्य सत्य माने जाते हैं. अष्टांग मार्ग से उन्होंने ज्ञान प्राप्ति का मार्ग बताया है. मुझे यह भ्रम था कि बौद्ध धर्म भारत में खत्म हो गया है लेकिन बोधगया जाने के बाद यह भ्रम टूटा है. ब्राह्मणों और बुद्ध अनुयायियों के बीच ना जाने कितने संघर्ष हुए लेकिन उसके बावजूद बौद्ध धर्म आज भी भारत में ही नहीं ब्लकि वैश्विक स्तर पर विराजमान है।
नालंदा
नालंदा विश्वविद्यालय के बारे में कहा जाता है कि बख्तियार खिलजी ने जब यहाँ पर आग लगवाई तो उसकी लाइब्रेरी 6 महीने तक जलती रही. उससे भी बड़ी बात कि यहां पर पढ़ने के लिए यूनिवर्सिटी के बाहर दुनिया भर के विद्यार्थी 6-6 महीने खड़े रहते थे. ताकि यूनिवर्सिटी में प्रवेश मिल सके. बताया जाता है कि विश्वविद्यालय में पढ़ने के लिए प्रवेश की प्रक्रिया बड़ी जटिल थी बहुत कम ही छात्र उसे उत्तीर्ण कर पाते थे.
वर्तमान नालंदा खंडहर को जाकर देखा. आज भी यह बहुत विशाल परिसर है. इसके बावजूद इस विश्वविद्यालय की खुदाई पूर्ण रूप से नहीं हुई है. माना जाता है विश्वविद्यालय के खंडहर के ऊपर वर्तमान में कई गांव बसे हुए हैं. वर्तमान परिसर में हॉस्टल, प्रशासनिक विभाग और शैक्षणिक विभाग के भवन खंडहर के रूप में उपस्थित हैं. गुप्त काल, कन्नौज के राजा और पाल वंशों के राजाओं ने समय-समय पर इसके निर्माण में अपना योगदान दिया था.
राजगीर
ब्रह्मकुंड का हॉटस्प्रिंग वाटर यहाँ का बहुत फेमस है. राजगीर पांच पहाड़ियों से घिरा हुआ है और सप्त ऋषियों के ब्रह्मकुंड में इन पहाड़ियों से हमेशा गर्म जल आता है. राजगीर की सुरक्षा के लिए कहा जाता है राजा जरासंध ने 40 किलोमीटर की दीवार इन पहाड़ियों पर बनाई थी जिसे साइक्लोपियन दीवार कहते हैं. जिस पर जगह-जगह शत्रु देश से सुरक्षा के लिए सैनिकों और हथियारों की तैनाती की जाती थी.
राजगीर कभी मगध साम्राज्य की राजधानी हुआ करता था, बाद में मौर्य साम्राज्य का भी हुआ. जरासंध ने यहीं श्रीकृष्ण को हराकर मथुरा से द्वारिका जाने को विवश किया था. जरासंध का अखाड़ा यहाँ बहुत फेमस है. मैं वहाँ भी गया. इसी अखाड़े पर श्री कृष्ण की चालाकी से भीम द्वारा मलयुद्ध में जरासंध का वध हुआ था. बुद्ध के उपदेशों को यहीं लिपिबद्ध किया गया था और पहली बौद्ध संगीति भी यहीं हुई थी.
राजगीर बह्मा की पवित्र यज्ञ भूमि, संस्कृति और वैभव का केन्द्र तथा जैन धर्म के 20 वे तीर्थंकर मुनिसुव्रतनाथ स्वामी के एवं 24 वे तीर्थंकर महावीर स्वामी के प्रथम देशना स्थली भी है. इसके अलावा हिंदुओं का भी यह पवित्र स्थान रहा है. नौलखा मंदिर इसका प्रतीक कहा जा सकता है.
इसके अलावा मैं राजगीर वन्यजीव अभयारण्य गया. यहाँ की जू सफारी का आनंद लिया. इसी में नेचर सफारी, राजगीर ग्लास ब्रिज पर भी चला. जिप लाइन की भी यात्रा की. इसी सफारी के अंदर गौतम बुद्ध के जाने वाले मार्ग को भी देखा. वास्तव में राजगीर हिंदू, बौद्ध और जैन धर्म का संगम है.
गया
राज्य का दूसरा सबसे बड़ा शहर गया के पूर्व में फल्गू नदी बहती है. शहर तीन पहाड़ियों मंगला-गौरी, श्रृंग स्थान, रामशिला और ब्रह्मयोनि से घिरा हुआ है. यहाँ का विष्णुपद मंदिर बहुत ही फेमस है. पितृपक्ष में यहाँ पिंडदान के लिए बहुत बड़ा मेला लगता है और दुनिया भर के लोग यहाँ जुटते हैं. माना जाता है कि कभी भगवान राम ने माता सीता के साथ इस मंदिर का दौरा किया था.
फल्गु नदी का पानी कभी दिखता नहीं है. इसके पीछे माता सी
ता से संबंधित एक कहानी प्रसिद्ध है. कहा जाता है कि यहाँ फल्गु नदी के तट पर पिंडदान करने से मृत व्यक्ति को बैकुण्ठ की प्राप्ति होती है। नदी के एक तरफ मंदिर है तो दूसरी तरफ सूर्य मंदिर है और माता सीता का कुंड है. जहाँ भक्तों की भारी भीड़ जुटती है.
पटना
कभी पाटलिपुत्र कहा जाने वाला पटना आज काफी बदल गया है. पटना भ्रमण के दौरान पटना म्यूजियम, बिहार म्यूजियम, गांधी मैदान, गोलघर और मरीन ड्राइव जाने का मौका मिला. पटना सिखों के दसवें और अंतिम गुरु गोविन्द सिंह की भी जन्मस्थली है। पटना का प्राचीन नाम पुष्पपुरी और कुसुमपुर भी था. पटना एवं इसके आसपास के प्राचीन भग्नावशेष/खंडहर नगर के ऐतिहासिक गौरव के मौन गवाह हैं और नगर की प्राचीन गरिमा को आज भी प्रदर्शित करते हैं।
प्राचीन बौद्ध और जैन तीर्थस्थल वैशाली, राजगीर या राजगृह, नालन्दा, बोधगया और पावापुरी पटना शहर के आस पास ही अवस्थित हैं। पटना गंगा नदी के दक्षिणी किनारे पर अवस्थित है जहाँ पर गंगा घाघरा, सोन और गंडक जैसी सहायक नदियों से मिलती है। बताया जाता है कि महात्मा गांधी सेतु जो कि पटना से हाजीपुर को जोड़ने के लिये गंगा नदी पर उत्तर-दक्षिण की दिशा में बना एक पुल है, दुनिया का सबसे लम्बा सड़क पुल है।
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बोधगया और नालंदा जाकर मेरे मन की एक इच्छा पूरी हुई. बालपन का एक सपना पूरा हुआ. राजगीर में मैंने अपनी जिंदगी की पहली सफारी का आनंद लिया. बोधगया में बोधगम्य हो गया. महाबोधि मंदिर में पहली बार किसी धार्मिक स्थान पर मैंने अपना सुध-बुध खोया है. मैं वहाँ पर तथागत की प्रतिमा, बोधि वृक्ष, साधकों और परिसर के मनमोहक वातावरण में खो गया.
भगवान श्री राम ने जिस प्रकार पिता के वचनों की रक्षा हेतु राज्य सिंहासन त्याग दिया था ठीक उसी प्रकार सिद्धार्थ ने खुद को दिए गए वचनों की रक्षा हेतु राज्य सिंहासन त्याग दिया था और वन को निकल गए थे. बोधगम्य होने के लिए.
डायरी से- विकास धर द्विवेदी
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