बौद्ध धर्म ही नहीं आज पूरी सभ्यता के लिए भी विशेष दिन हैं. लगभग ढाई हजार साल पहले आज के नेपाल में एक बालक का जन्म बैसाख मास की पूर्णिमा को हुआ था। मेरे लिए बड़े सौभाग्य की बात रही कि पिछले दिनों मुझे बोधगया बिहार जाने का अवसर मिला. मैंने उस बोधि वृक्ष को बहुत करीब से देखा जिसके नीचे सिद्धार्थ एक राजकुमार से भगवान गौतम बुद्ध बन गए. मैंने बोधि वृक्ष के आध्यात्मिक सफलता को महसूस करने की कोशिश की.
सम्राट अशोक की पत्नी के उस दुश्चक को भी समझने का प्रयास किया जो उन्होंने बोधि वृक्ष के लिए किया था. बुद्ध पूर्णिमा के दिन ही गौतम बुद्ध का जन्म ही नहीं हुआ था, बल्कि उन्हें इसी दिन ज्ञान की प्राप्ति हुई थी और इसी दिन उनका महानिर्वाण भी हुआ था. इस लिहाज से बैसाख मास की पूर्णिमा का बड़ा महत्व हैं.
तत्कालीन दौर में जब शासन और विद्वानों की भाषा संस्कृति होती थी तब भगवान बुद्ध के संदेश लोकभाषा पालि में आमजन मानस को मिला. बौद्ध साहित्य में त्रिपतक, विनय पाऴि सूत्र, महायान सूत्र और अभिधर्म तथा बौद्ध तंत्र इसके सशक्त उदाहरण हैं. चार सप्ताह तक बोधिवृक्ष के नीचे रहकर धर्म के स्वरूप का चिंतन करने के बाद बुद्ध धर्म का उपदेश देने निकल पड़े.
मुझे पिछले वर्ष सारनाथ काशी, उत्तर प्रदेश भी जाना हुआ. इस स्थान पर भगवान बुद्ध ज्ञान प्राप्त करने के बाद आषाढ़ की पूर्णिमा को पहुंचे थे. यहीं पर उन्होंने सर्वप्रथम धर्मोपदेश दिया और प्रथम पाँच मित्रों को अपना अनुयायी बनाया और फिर उन्हें धर्म प्रचार करने के लिये भेज दिया. महाप्रजापती गौतमी (बुद्ध की विमाता) को सर्वप्रथम बौद्ध संघ मे प्रवेश मिला. आनंद भगवान बुद्ध का प्रिय शिष्य था, उसी को संबोधित करके वह अपना उपदेश देते थे.
चार आर्य सत्य, आर्य अष्टांग मार्ग और सैद्धांतिक दुनिया में निर्वाण, त्रिरत्न और पंचशील का प्रयोग देने वाले भगवान बुद्ध आधुनिक भारत में बड़े महत्वपूर्ण हैं. गांधी जी का अहिंसा का सिद्धांत कहीं ना कहीं भगवान बुद्ध से ही प्रेरित था. वर्तमान में भारतीय विदेश नीति में जो शांति का मूल्य है उसके पीछे भगवान बुद्ध की महान सोच है. संसार और मन दोनों शांति से ही चल सकते हैं, अशांति से सिर्फ अस्थिरता पैदा हो सकती है, इससे किसी का कल्याण नही होगा. इसलिए धम्मम् शरणम् गच्छामि.
- 23 मई 2024
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