उत्तर प्रवास भाग-1: वादी-ए-कश्मीर की यात्रा


जुलाई, 2024:
रामबन ज़िले के बनिहाल से मैं धरती के स्वर्ग कहे जाने वाले कश्मीर ग्रेट में प्रवेश किया. मैं सड़क मार्ग से कश्मीर की वादी की ओर बढ़ रहा था. जो श्रीनगर को कन्याकुमारी से जोड़ता है. जवाहर सुरंग जम्मू को कश्मीर से कनेक्ट करता है. 

पूरे रास्ते भर में नैसर्गिक छटा एक अलग रूप लिए नजर आती रही. हरियाली का आँचल फैला दिखाई दे रहा था. सेबों का मौसम आ गया है, हरे से लाल हो रहे सेब को देखकर आनंद आ रहा था. वैसे अखरोट, बादाम और केसर की फसल का भी अभी समय है.

श्रीनगर में लाल चौक में शांति है, भारतीय ध्वज फहरा रहा है, गर्मी यहाँ भी क़हर ढा रही है, चौक पर CRPF और राज्य की पुलिस आधुनिक और सुसज्जित हथियारों तथा वाहनों से लैस है, दोपहर का समय हो रहा है, मार्केट में ज़्यादा भीड़ तो नहीं लेकिन हलचल है, 1700 मीटर ऊंचाई पर बसे इस शहर के पहाड़ पर शंकराचार्य मंदिर से इसकी ऐतिहासिकता को समझा जा सकता है. 

मैं लाल चौक से डल लेक की तरफ़ बढ़ रहा हूँ, भीड़ बहुत ज़्यादा है, मोहर्रम जुलूस का 7वाँ निकाला जा रहा था, काले कपड़ों में मुस्लिम समुदाय के लोग अपने इस दुःख को प्रकट कर रहे है, जुलूस में ‘या हुसैन, या हुसैन; जी कर मरना सबको आता है, मरकर जीना कोई सीखा दें’ जैसे कर्बला के नारे लगाए जा रहे है, बाद में मुझे पता चला कि इसी जुलूस में फलस्तीन के झंडे लहराए गए और इजरायल व अमेरिका के खिलाफ नारेबाजी गई. 

श्रीनगर शहर को मौर्य सम्राट अशोक द्वारा बसाया था. झेलम नदी के किनारे बसाया शहर काफ़ी ख़ूबसूरत है, डल लेक के साथ आंचार झील भी नगर-भूगोल को मनमोहक बनाने में योगदान देती है, हर मौसम में उद्यानों व प्राकृतिक वातावरण की बात के क्या कहने!श्रीनगर परम्परागत कश्मीरी हस्तशिल्प, हाऊसबोट और सूखे मेवों के लिए विश्व प्रसिद्ध है. 

कश्मीर के एक ओर की एक अलग छटा है, मैं अनंतनाग ज़िले के पहलगाम गया. अमरनाथ की यात्रा यहीं से शुरू होती है, इसके अलावा पश्चिम में भी बालटाल में यात्रा प्रारंभ बिंदु हैं लेकिन इस मार्ग से ज़्यादातर यात्री चढ़ाई शुरू करते हैं और उतरते समय बालटाल वाले रूट का उपयोग करते हैं. दूर-दूर तक फैला हुआ अमरनाथ यात्रियों का कैंप, पहाड़ों में जैसे कोई शहर बस गया हो, बिलकुल वैसा लगता है. 

पहलगाम के आस-पास चंदनबाड़ी, अरु वैली, मिनी स्विट्ज़रलैण्ड सहित कई प्राकृतिक मनोरम जगहों को; धरती में स्वर्ग कहे जाने वाली जगहों के रूप में देखा जा सकता है, यहाँ पहाड़ों के बीच लिद्दर नदी बहती है, इसका दृश्य देखकर किसी का भी मन आनंदित हो जाता है. चारों तरफ़ पहाड़, बीच में नदी और नगर का विहंगम दृश्य के क्या कहने! 

कश्मीर के दूसरी ओर गांदरबल ज़िले में गया. कश्मीर की कुलदेवी माता खीर भवानी के दर्शन करने का मौक़ा मिला. माता रानी का परिसर और आस-पास के क्षेत्र शांति के अग्रदूत जैसे लगे. परिसर में लगे पुराने चीड़ के पेड़ों को देखकर उसकी ऐतिहासिकता का बोध होता है. 

पश्चिमी क्षेत्र में सोनमर्ग और गुलमर्ग को भी देखा जा सकता है. मित्र प्रभाष रंजन जी के प्रयासों के कारण केन्द्रीय कश्मीर विश्वविद्यालय भी जाने का अवसर मिला, नए परिसर के निर्माणाधीन कार्यों को क़रीब से देखा, और ज़रूरी बातों को समझने का प्रयास किया. ये ना केवल कश्मीर के बल्कि पूरे देश के युवाओं को एक अवसर प्रदान कर रहा है. मानसबल झील भी गया. अद्भुत!

मानसबल झील के ठीक ऊपर पहाड़ पर स्थित कोंडाबल नामक कश्मीरी गाँव गया. मित्र प्रभाष जी की वजह से मैंने वहाँ के लोगों से बात की, पूरे गांव को घूमा, रहन-सहन और खेत-खलिहान देखें, कश्मीरी पंडितों के पलायन के कारणों को समझा और युवाओं के सपने को, उनकी आँखों में देखने का प्रयास किया. एक छोटे से पहाड़ी गाँव में; दो विधानसभा क्षेत्र का लगना, ये जानकर आश्चर्य हुआ.

दक्षिणी कश्मीर को श्रीनगर से बनिहाल की लोकल ट्रेन में यात्रा करते समय क़रीब से देखा. ट्रेन में आस-पास क्षेत्र के ही ज़्यादातर यात्री थे, कोई उधमपुर जा रहा था, कोई जम्मू की ओर. रास्ते में दोनों तरफ़ पहाड़ी गाँव ही गाँव थे. कुछ गाँव मैदानी भागों में दिखे, ज़्यादातर चीड़ के पेड़ और बागानों में फलों की फ़सल लहलहा रही थी, ट्रेन जवाहर टनल से भी होकर गुज़री. बनिहाल भी बड़ा ख़ूबसूरत नगर है, जिसे देखकर मन खुश हो गया.

श्रीनगर अभी डायरेक्ट दिल्ली से रेलवे मार्ग से नहीं जुड़ पाया है लेकिन निर्माण कार्य बड़े तेज़ी के साथ हो रहा है, सिर्फ़ रियासी ज़िले में दो-चार स्टेशन छोड़कर और काम पूरा हो गया है. निर्माण कार्य के बाद कश्मीर कन्याकुमारी से पूरी तरीक़े से रेलवे मार्ग से जुड़ जाएगा. जो आपने-आप में बड़ा ऐतिहासिक होगा. 

भारतीय कश्मीर घाटी में कुल 10 ज़िले है. अनंतनाग, बारामूला, बडगाम, बांदीपुर , गांदरबल, कुपवाड़ा, कुलगाम, पुलवामा, शोपियां और श्रीनगर. सब एक से बढ़कर एक, काफ़ी ख़ूबसूरत. पीर-पंजाल पर्वत-श्रेणी कश्मीर को जम्मू खंड और पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर से अलग करती है. सत्य ही इसे धरती का स्वर्ग कहा जाता है; 

गर फ़िरदौस बर रुए ज़मीं अस्त,
हमीं अस्त, हमीं अस्त, हमीं अस्त।

(फ़ारसी में मुग़ल बादशाह जहाँगीर के शब्द)

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