पूर्व प्रवास भाग-3: पूर्वोतर भारत के प्रथम गाँव काहो और अंजॉ जिला भ्रमण



दिसंबर, 2024: भारत के प्रथम गाँव काहो का सुबह-सुबह का नजारा बड़ा खूबसूरत था। मौसम खूब ठंडा, तापमान 0 डिग्री। प्रकृति अपनी मनोरम छटा बिखेर रही थी। चीन से लोहित नदी निकलकर भारत में बह रही थी और सूरज की किरणें पहाड़ों पर पड़ रही थी। इन सबका संगम देखकर मन हर्षित हो रहा था। इस गाँव से भारत, तिब्बत (चीन) और पहाड़ के उस पार वर्मा (म्यांमार)  का संदर्भ समझ सकते है।

काहो गाँव अरुणाचल प्रदेश के अंजॉ जिले में पड़ता है। काहो किबिथू ब्लॉक के उन सात गाँवों में से एक है जो सीमावर्ती रेंज में पड़ते है। इस गाँव की अपनी ख़ूबसूरती है, गाँव से मुख्य गेट पार करने पर करीब 500 मीटर का रास्ता अंदर जाता है, जो इस गाँव को एक आर्मी चेकपोस्ट से जोड़ता है। काहो में 42 परिवार रहते है, जिसमें 94 सदस्य हैं। सब घर आस-पास में स्थित है। हर घर में एक बगीचा है, लोग खेती बाड़ी से अपना जीवन यापन करते है। 

अंजॉ में मायूँन समुदाय के अधिकांश लोग है, जो आपस में ज्यादातर रिश्तेदार है। लोगों का स्वभाव बड़ा सरल है, ईमानदारी के मामले में इनका कोई तोड़ नहीं है। गाँव टहलते हुए चीर के पेड़, संतरे और अनार के पेड़ देखकर मन हर्षित हो गया। गाँव में एक स्कूल है और एक जनरल स्टोर की दुकान भी है। गाँव के ऊपर एक आर्मी द्वारा बनाया गया, व्यूपॉइंट है। जिसे आइटीबीपी की गोम्पा चौकी के नाम से जाना जाता है। 

गोम्पा चौकी चीन को काफ़ी क़रीब से देखा जा सकता है। मैंने दूरबीन का उपयोग करके चीन के कई बिल्डिंगों को देखा, उस पर लिखा कम्युनिस्ट सिम्बल भी देखा। वहाँ से चीन आर्मी पोस्ट और चीन की हर गतिविधियाँ नजर आ रही हैं। काहो गाँव के सामने, लोहित नदी के पार एक बीच में पहाड़ है, जोकि भारत को चीन से अलग करता है। काहो के पूर्व में वर्मा की सीमा प्रारंभ होती है। 

काहो गाँव के बाद डोंग वेली की तरफ़ बढ़ चले। डोंग वेली को अरुणाचल प्रदेश के उगते सूर्य की धरती कहा जाता है, यहाँ सूरज पूरे भारत में सबसे पहले दिखाई देता है। काहो के पूर्व में क़रीब 15 किलोमीटर पर डोंग वेली है, जहाँ थोड़ी आबादी के बीच, पहाड़ों पर जाकर उगते सूरज को निहारा जा सकता है। प्रकृति की इससे अनुपम अनुभूति क्या होती होगी! 

डोंग वेली से उत्तर पूर्व में क़रीब 20 किलोमीटर दूर पूर्वोत्तर भारत का अंतिम छोर किबिथू है। एक बार फिर अब कम खतरनाक पुल करोती ब्रिज को पार किया, उसके बगल का दृश्य देखकर लगा कि मैं कहाँ आ गया हूँ। चीड़ के पेड़ों के नीचे लाल रंग की गिरी हुई पत्तियाँ उस क्षेत्र की शोभा में चार चाँद लगा रही थीं। ऐसा दृश्य देखकर मन हर्षित हो गया। 

किबिथू जाना उतना सरल नहीं था, जितना लगता है। डोंग वेली से किबिथू की यात्रा एक अविस्मरणीय अनुभव था। हमारी यात्रा की शुरुआत सुबह हुई, और हमें उम्मीद थी कि हम किबिथू जल्दी पहुँच जाएंगे। लेकिन, जैसे ही हमने अपनी यात्रा शुरू की, हमें पता चला कि सड़क बनने की वजह से रास्ते में दिक्कतें होंगी।

किबिथू जाते वक्त, हमें रास्ते में दो घंटे तक रुकना पड़ा। पत्थरों को ब्लास्ट किया जा रहा था, और सड़क मार्ग बंद था। हमने इस समय का उपयोग अपने आसपास के प्राकृतिक सौंदर्य को निहारने के लिए किया। हमने पहाड़ियों की ऊंचाइयों को देखा, और हरे-भरे जंगलों की सुंदरता का आनंद लिया।

पूर्वोत्तर भारत के अंतिम बिंदु किबिथू पहुँचा। यहाँ आना अपने-आप में एक बड़ी बात है, सामने तिब्बत और पूर्व की ओर वर्मा था। हमने टाउन में वहाँ के स्थानीय लोगों से मुलाकात की और उनकी संस्कृति के बारे में जाना। हमने वहाँ के कैफ़े में मोमोज़ का स्वाद भी लिया, जो बहुत ही स्वादिष्ट था।

लेकिन, किबिथू से वापस आते वक्त, हमें फिर से रास्ते में दो घंटे तक रुकना पड़ा। इस बार भी पत्थरों को ब्लास्ट किया जा रहा था, और सड़क मार्ग बंद था। हमने इस समय का उपयोग अपने अनुभवों को साझा करने के लिए किया, और हमने अपनी यात्रा के दौरान ली गई तस्वीरों को देखा।

देर रात, हम हायुलियांग, अंजॉ जिले में पहुँचे, जहाँ हमने रात्रि विश्राम किया। हमारी यात्रा एक अविस्मरणीय अनुभव था, और हमने बहुत कुछ सीखा। हमने सीखा कि यात्रा के दौरान कभी-कभी दिक्कतें आती हैं, लेकिन हमें हार नहीं माननी चाहिए। हमें अपने अनुभवों का आनंद लेना चाहिए, और हमें अपनी यात्रा के दौरान मिलने वाले लोगों के साथ जुड़ना चाहिए।

विकास धर द्विवेदी 
20 दिसंबर, 2024

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