पूर्व प्रवास भाग-5 (अंतिम): रानी गाँव से माता कामाख्या देवी का दर्शन


दिसंबर, 2024:
 रानी गाँव से माता कामाख्या देवी का दर्शन पूर्वोत्तर भारत की इस अद्भुत यात्रा का अंतिम चरण, माँ कामाख्या देवी के दर्शन के साथ पूरा हुआ। यह अनुभव केवल धार्मिक आस्था का नहीं, बल्कि प्रकृति और इतिहास के गहरे संगम का था।

गुवाहाटी से लगभग 20 किलोमीटर दूर स्थित रानी गाँव, प्रकृति की गोद में बसा एक सुंदर और शांत स्थान है। यहाँ के स्थानीय लोगों ने हमें माता कामाख्या देवी के दर्शन का महत्व और मंदिर तक पहुँचने के मार्ग के बारे में विस्तार से बताया।

रानी गाँव से कामाख्या मंदिर तक का रास्ता प्राकृतिक सुंदरता से भरा हुआ है। सड़कें घुमावदार थीं, लेकिन हरियाली और ब्रह्मपुत्र नदी के दूर तक फैले दृश्य ने सफर को आनंदमय बना दिया। जैसे-जैसे हम मंदिर के करीब पहुँचे, हवा में एक अलग ही पवित्रता महसूस होने लगी।

कामाख्या मंदिर के पास पहुँचने पर माहौल भक्तिमय था। सड़क किनारे दुकानों में फूल, प्रसाद, और असमिया गमछे बिक रहे थे। स्थानीय संस्कृति यहाँ हर कदम पर दिखाई देती है।

कामाख्या मंदिर शक्तिपीठों में से एक है, और इसकी पवित्रता और भव्यता श्रद्धालुओं को अपनी ओर आकर्षित करती है। मंदिर का मुख्य भाग नीलाचल पर्वत पर स्थित है, जहाँ से गुवाहाटी और ब्रह्मपुत्र नदी का विहंगम दृश्य देखा जा सकता है।

मंदिर के प्रांगण में प्रवेश करते ही एक दिव्य अनुभव का आभास हुआ। लाल रंग की मुख्य गुंबद, जो मंदिर की पहचान है, बेहद आकर्षक थी। मंदिर का स्थापत्य शैली असमिया संस्कृति और परंपरा का प्रतीक है।


दर्शन के लिए हमें थोड़ी प्रतीक्षा करनी पड़ी, क्योंकि यहाँ प्रतिदिन बड़ी संख्या में श्रद्धालु आते हैं। मंदिर के गर्भगृह में माँ कामाख्या की मूर्ति के स्थान पर एक प्राकृतिक गुफा है, जिसमें जल से भरा एक योनिकुंड स्थित है। इसे शक्ति और सृजन का प्रतीक माना जाता है।

जब हमने माँ कामाख्या के दर्शन किए, तो वह क्षण बेहद शांत और आध्यात्मिक था। मंदिर में गूंजते मंत्रोच्चार और भक्तों की आस्था ने वातावरण को और भी पवित्र बना दिया। वहाँ कुछ समय ध्यान में बिताने के बाद, हमें आंतरिक शांति और ऊर्जा का अनुभव हुआ।

कामाख्या देवी के दर्शन के बाद, हमने गुवाहाटी एयरपोर्ट की ओर प्रस्थान किया। रास्ते में ब्रह्मपुत्र नदी के किनारे-किनारे चलते हुए, हमने इस यात्रा के सभी अनुभवों को मन में समेटने की कोशिश की। चाय के बागानों की हरियाली और गुवाहाटी शहर की हलचल ने इस सफर को और भी खास बना दिया।

गुवाहाटी एयरपोर्ट पहुँचने पर मन में एक अजीब सा भाव था—पूर्वोत्तर की यात्रा समाप्त हो रही थी, लेकिन यह स्थान और इसके लोग हमारे साथ हमेशा रहेंगे। एयरपोर्ट पर हमने अंतिम बार स्थानीय चाय का स्वाद लिया और असमिया संस्कृति को नमन किया।

पूर्वोत्तर भारत, अपनी प्राकृतिक सुंदरता, सांस्कृतिक विविधता, और आध्यात्मिक ऊर्जा के लिए हर यात्री को एक नया दृष्टिकोण देता है। यह केवल एक यात्रा नहीं थी, बल्कि जीवन के प्रति एक नई जागरूकता और आभार का अनुभव था।

विकास धर द्विवेदी
22 दिसंबर, 2024

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