डायरी से: विनोद कुमार शुक्ल का नहीं साहित्य परंपरा का सम्मान


‘जो मेरे घर कभी नहीं आएँगे/मैं उनसे मिलने/उनके पास चला जाऊँगा’ 

साल 2019 में मैंने जब पहली बार ये पंक्तियां पढ़ी तो दंग रह गया कि कैसे एक लेखक ने कितनी बड़ी बात कह दी! अभी हाल में ही इन्हीं पंक्तियों के महान लेखक विनोद कुमार शुक्ल को साहित्य जगत के सर्वोच्च सम्मान ज्ञानपीठ पुरस्कार देने की घोषणा हुई है। 

किसी लेखक को पुरस्कार मिलना, ये सिर्फ़ उसका सम्मान नहीं है बल्कि उस समृद्ध परंपरा का सम्मान है जो भारतेंदु हरिश्चंद्र के ज़माने से चली आ रही है। इस परंपरा को प्रसाद, अज्ञेय, नरेश मेहता, श्रीकांत वर्मा जैसे विभूतियों ने पोषित किया है।

जब मैंने अपने कॉलेज के दिनों में शुक्ल जी की ‘सब कुछ होना बचा रहेगा’ किताब पढ़ी तो सिर्फ़ इतना लिख पाया कि “वास्तव में शुक्ला जी ने अत्याधिक शब्द विन्यास का उपयोग करते हुए एक सार्थकमय कविता का वर्णन किया है। जिसमें छंद, ताल, और तुकबंदी एक अनूठी अनुभूत का एहसास दिलाती है। खासकर जो लगातार काम में पड़े हैं, उनसे एक जरूरी काम की तरह मिलता रहूंगा- ये कविता का सार है। शुक्ल जी ने अपनी वाणी से अद्भुत शब्द विन्यास रच डाला है। कविता को पढ़कर ना‌ जाने कब मैं गहराइयों में डूब गया।” 

ये सवाल स्वाभाविक है कि ऐसे कौन लोग है? जिनसे हम मिलते रहना चाहते हैं। हम दर्शन का ये सवाल कहकर आगे बढ़ सकते हैं लेकिन ये इसका वास्तविक उत्तर नहीं हुआ। ठीक उसी प्रकार जैसे लगता है कि सब कुछ होना बचा रहेगा, लेकिन ऐसा है नहीं? बचाने के लिए ईमानदार उद्यम करना पड़ेगा। बहरहाल, जब छायावादी युग अपने समापन में था तो प्रगतिवादी काल में शुक्ल जी का जन्म छत्तीसगढ़ में हुआ। वो आदिवासी की समस्या पर लिखते हैं;

‘एक आदिवासी/कहीं भी आदिवासी नहीं/चलते-चलते/राह के एक पेड़ के नीचे खड़ा हुआ नहीं/दूर चलते-चलते/दूसरे पेड़ के नीचे, थककर भी बैठा नहीं,/जंगल से बाहर हुआ आदिवासी/एक पेड़ के लिए भी आदिवासी नहीं।’ 

विनोद कुमार शुक्ल एक जन कवि है, जिन्होंने ‘मंगल ग्रह’ को ‘मंगलू’ बना दिया।‘नौकर की कमीज’ उपन्यास लिखकर एक विरल धारा के पुरोधा बनें। वास्तव में शुक्ल की रचनाएँ न केवल शब्दों के अद्भुत प्रयोग का उदाहरण हैं, बल्कि वे समाज और संस्कृति में बदलाव की गूंज भी हैं। उनकी कविताएँ और उपन्यास हमें याद दिलाते हैं कि साहित्य की शक्ति किस प्रकार गहराई से व्यक्तित्व, सामाजिक चेतना और परंपरा को प्रभावित कर सकती है। उनके कार्यों ने भारतीय साहित्यिक धारा में एक नई दिशा और ऊर्जा प्रदान की है, जिससे उनके योगदान का सम्मान केवल पुरस्कारों तक सीमित नहीं रहता, बल्कि यह एक समृद्ध विरासत की पुनरावृत्ति भी है।

विकास धर द्विवेदी 
30 मार्च 2025


टिप्पणियाँ

Vikahdhardrivedi ने कहा…
बहुत बहुत धन्यवाद👍👍