पश्चिम प्रवास भाग–3: देवभूमि द्वारका का देशाटन


जुलाई, 2025: भुज से सड़क मार्ग से मैं गुजरात के पश्चिमी और सौराष्ट्र क्षेत्र के शहरों व कस्बों से होकर द्वारका पहुँचा। जिसमें पहले भचाऊ और गांधीधाम और जामनगर जैसे शहरों से होकर गुजरा। जामखंभालिया के बाद सीधे द्वारका पहुँचा गया। द्वारका नगरी का नाम आते ही शरीर में एक नई ऊर्जा दौड़ जाती है। यह वही द्वारका थी, जो न केवल श्रीकृष्ण की राजधानी रही बल्कि जहाँ धर्म और समुद्र एक साथ दृष्टिगोचर होते हैं।

द्वारका देवभूमि द्वारका जिले में पड़ता है, जिसका मुख्यालय जामखंभालिया है। सबसे पहले मैंने द्वारकाधीश मंदिर में दर्शन किया, गर्भगृह में श्रीकृष्ण की चतुर्भुज मूर्ति के दर्शन के दौरान, भीतर की सारी उथल-पुथल जैसे शांत हो गई। मंदिर के पत्थरों से लेकर शिखर तक, सब कुछ भक्ति से भरा हुआ था। घंटियों की गूंज, पुजारियों की मंत्रध्वनि और भक्तों की श्रद्धा — यह सब मिलकर वहाँ की हवा को भी पवित्र बना देते हैं।

द्वारकाधीश मंदिर की शिल्पकला की भूरी-भूरी प्रशंसा की जानी चाहिए। मंदिर की दीवारों, स्तंभों और गर्भगृह की नक्काशी अत्यंत सुंदर और बारीक है। शिल्पकारों ने भगवान कृष्ण के जीवन की घटनाओं को पत्थरों पर उकेरा है, जो श्रद्धालुओं को अध्यात्म के साथ-साथ कला का भी अनुभव कराते हैं। 

मंदिर के पीछे स्थित गोमती घाट पर गया। भक्तगण यहाँ स्नान भी करते हैं। द्वारका से दो किलोमीटर दूर रुक्मिणी देवी का मंदिर है। अलगाव में खड़ा यह मंदिर ही अपने आप में कथा है। दुर्वासा ऋषि के श्राप से कृष्ण और रुक्मिणी अलग रहे, और उसी के विरह में मंदिर का निर्माण हुआ। यहाँ भक्तगण अपने पितरों के मोक्ष हेतु जलदान करते हैं। 


पूर्व में भक्तगण बेट द्वारका ओखा बंदरगाह से नाव लेकर जाते थे, लेकिन अब ब्रिज बनने से, इसी से जाते हैं। और नाव सेवा बंद हो गई। समुद्र के बीच बसे इस द्वीप में पहुँचकर जैसे श्रीकृष्ण का घरेलू जीवन सामने आ गया। यहाँ के मंदिर में कृष्ण और सुदामा की मित्रता, रुक्मिणी के साथ निवास और भक्तों की अडिग आस्था सब एक साथ देखने को मिला। पास में ही “सोने की द्वारका” नामक संग्रहालय में भी गया। 

द्वारका एक प्राचीन और ऐतिहासिक नगरी है, यहाँ भगवान श्री कृष्ण से संबंधित कई मंदिर स्थापित हैं। द्वारकाधीश मंदिर के अलावा नागेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर, भदकेश्वर महादेव मंदिर, गोपी तालाव, द्वारका बीच, गीता मंदिर, गायत्री शक्तिपीठ, सिद्धेश्वर महादेव और हर्षिद्धि मंदिर में भी दर्शन किया।


सूर्यास्त के समय द्वारका के समुद्र तट का दृश्य देखने लायक रहा। द्वारका न केवल समुद्र तट की खूबसूरती के लिए प्रसिद्ध है, बल्कि यह स्थान आध्यात्मिक शांति और सांस्कृतिक विरासत का संगम भी है। भगवान श्रीकृष्ण ने अपने जीवन का अधिकांश समय यहाँ बिताया, जो भारतीय परम्परा, इतिहास और विरासत में एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है। 

विकास धर द्विवेदी
16 जुलाई 2025 
द्वारका, गुजरात  

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