पश्चिम प्रवास भाग–4: पोरबंदर में बापू जी की जन्मस्थली एवं सोमनाथ में महादेव का दर्शन


जुलाई, 2025: सौराष्ट्र के दखिन भाग में द्वारका से पोरबंदर होते हुए सोमनाथ की यात्रा बहुत रोचक रही, सड़क मार्ग से जाते हुए ऐसा लगा कि मानो अरब सागर भी साथ चल रहा हो। लगभग 250 किलोमीटर का सफ़र रहा। रास्ते में मैंने कई छोटे-बड़े नगरों और कस्बों को पार किया। सबसे पहले भाटिया, फिर भानवड नामक नगर से गुजरा। यहाँ के ग्रामीण परिवेश और सौराष्ट्र की ठेठ संस्कृति सड़क के दोनों ओर दिखाई देती रही। 

रास्ते में मियाणी गांव के पास स्थित हर्षद माता मंदिर में कुछ देर रुका। सीढ़ी टूट जाने की वजह से, ऊँचाई पर स्थित पूर्व का मंदिर बंद हो गया है लेकिन नीचे मंदिर पर दर्शन किया जा सकता है। मान्यता है कि यहाँ भगवान श्री कृष्ण ने माता की पूजा की थी। इसके बाद मूल द्वारका भी गया, इसके बारे में कहा जाता है कि भगवान श्री कृष्ण यहाँ द्वारका को राजधानी बनाने से पहले कुछ समय के लिए रुके थे। 


पोरबंदर पहुँचकर सबसे पहले महात्मा गांधी की जन्मस्थली गया, यहाँ राष्ट्रपिता का 2 अक्टूबर 1869 को जन्म हुआ था, मैंने वो कोठरी भी देखी। संग्रहालय में उनके निजी वस्त्रों को देखकर मन गर्व और भावुकता से भर गया। सहसा वो दृश्य याद आया, जब मैं पिछले वर्ष दिल्ली स्थित बिरला हाउस गया था, जहाँ गांधी जी की हत्या हुई थी। जन्मस्थान और देहावसान स्थली दोनों की कड़ी जुड़ रही थी। 

मैंने वहाँ मौजूद चरखा भी चलाया — वही चरखा जो स्वतंत्रता संग्राम में आत्मनिर्भरता और स्वदेशी का प्रतीक बना। उस समय ऐसा लगा कि मानो मैं इतिहास के किसी जीवंत पल को स्पर्श कर रहा हूँ। इसके पश्चात मैंने बापू के जीवन पर आधारित एक फोटो गैलरी देखी। गैलरी उनकी पुरानी तस्वीरों से सजी हुई थी। 

हर चित्र जैसे एक कहानी कह रहा था, जैसे- कहीं गांधीजी दांडी यात्रा पर अग्रसर हैं, तो कहीं वे बच्चों के साथ बहुत ही ख़ुश नजर रहे है। एक तस्वीर में वे जेल में ध्यानमग्न बैठे थे, तो दूसरी में चरखा कातते हुए आत्मनिर्भरता का संदेश दे रहे थे। गांधी जी के सत्य और अहिंसा के विचार की पूरी झलक मैंने महसूस की। 

इसके बाद मैं सुदामा मंदिर गया। यह मंदिर श्रीकृष्ण के बालसखा सुदामा को समर्पित है, माना जाता है कि उनका जन्म यहीं हुआ था। इसके बाद मैं चोपाटी बीच और माधवपुर बीच की पर समुद्र की लहरों को महसूस किया। पोरबंदर में स्थित जांबुवंत गुफा भी देखी, जो पौराणिक रूप से रामायण और महाभारत काल से जुड़ी है, बताया जाता है कि यहाँ जांबुवंत और भगवान श्री कृष्ण का 28 दिनों तक भीषण युद्ध चला था। 

सोमनाथ में महादेव का दर्शन 

पोरबंदर से आगे बढ़ते हुए राणावाव, चोरवाड़ और फिर वेरावल जैसे नगरों से गुजरते हुए मैं सोमनाथ पहुँचा। वेरावल नगर कभी नौकाओं के निर्माण के लिए प्रसिद्ध रहा है और अब भी सोमनाथ के निकट होने के कारण इसका धार्मिक महत्व है। 

दोपहर बाद जब मैं सोमनाथ पहुँचा, तो समुद्र के किनारे खड़ा सोमनाथ ज्योतिर्लिंग मंदिर दूर से ही मन को आकर्षित कर रहा था। यह वह स्थान है जहाँ काल की अनेक आँधियाँ आईं, लेकिन आस्था और शिवभक्ति अडिग रही। रात्रि में मंदिर के अंदर गर्भगृह का दर्शन कर मन प्रसन्न हुआ। समुद्र की लहरें मंदिर के ठीक पीछे टकराती हैं, जिससे यहाँ का वातावरण अत्यंत दिव्य प्रतीत होता है। 


मंदिर में लाइट शो भी होता है लेकिन आजकल बंद है। सोमनाथ मंदिर का स्थापत्य कला एक अनमोल उदाहरण है। मंदिर का शिखर काफ़ी ऊँचा है। मुख्य गर्भगृह के ऊपर बना कलश और ध्वजदंड न केवल धार्मिक महत्व रखते हैं, बल्कि स्थापत्य की बारीकियों का भी परिचय देते हैं। मंदिर की दीवारों पर की गई पत्थर की नक्काशी और स्तंभों की जटिल डिजाइन अनुपातबद्ध बनावट का प्रतीक है। 

इसके अलावा मैंने सोमनाथ में भालका तीर्थ, बाण गंगा मंदिर, त्रिवेणी संगम, देहोत्सर्ग तीर्थ, सोमनाथ समुद्र तट, सूर्य मंदिर, पंच पांडव गुफा, शारदा पीठ / कामदेव मंदिर, राम मंदिर और कुछ अन्य दर्शनीय स्थलों का भ्रमण किया। 

विकास धर द्विवेदी
17 जुलाई 2025 
सोमनाथ, गुजरात 

टिप्पणियाँ

Vikahdhardrivedi ने कहा…
जय हो।।👍👍