जुलाई, 2025: आज का पंचमहल जिला, जो कभी गुजरात की राजधानी हुआ करता था, बड़ा ऐतिहासिक नगर है। शाम के समय मैंने वहाँ से सड़क मार्ग द्वारा अहमदाबाद की ओर प्रस्थान किया। यात्रा के दौरान रास्ते में गुजराती ग्रामीण जीवन की झलक, खेतों की हरियाली और स्थानीय गुजराती संस्कृति को देखने और समझने को मिला।
भारत का मैनचेस्टर कहे जाने वाले साबरमती नदी किनारे बसे अहमदाबाद शहर में प्रवेश करते ही; आधुनिकता, ऐतिहासिक विरासत और सांस्कृतिक चेतना का समावेश स्पष्ट रूप से अनुभव हुआ। इस शहर को विश्व विरासत स्थल के रूप में मान्यता दी गई। शहर अपने भीतर महात्मा गांधी की कर्मभूमि और अन्य ऐतिहासिक स्थलों, व्यापारिक केन्द्रों एवं शहरी जीवन की जीवंतता को आत्मसात किए हुए है।
अहमदाबाद शहर को पहले आशा भील के समय आशावाल, कर्णदेव के कर्णावती, सुल्तान अहमद शाह के अहमदाबाद, जैन धर्म की राजधानी राजनगर के रूप जाना गया। यह महात्मा गांधी एवं सरदार पटेल का राजनीतिक-सांस्कृतिक शहर रहा। अंग्रेजों ने इसे अहमदाबाद लिखा और इस तरह से यह अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अहमदाबाद के नाम से जाना जाने लगा।
स्थानीय भाषा में अमदावाद के नाम से लोकप्रिय हो गया और सभी गुजराती इसे अमदावादी के नाम से जानते हैं। दुनिया भर में यहाँ के नागरिक अमदावादी के नाम से जाने जाते हैं। किसी मानक प्रणाली का स्थानीकरण जब होता है तो वह सरलता की ओर ही होता है, अमदावादी उसका प्रतीक है। शहर में सैकड़ों मंदिर, मस्जिद और अन्य तीर्थस्थल हैं।
इन सबके बीच, एक जगह जिसकी चर्चा ज़्यादा होती है वो है
साबरमती आश्रम। महात्मा गांधी जी ने इसे राष्ट्र को समर्पित कर दिया, ये उनकी कर्मभूमि रही। इसे हृदयकुंज के नाम से भी जाना जाता है। रात्रि शहर देशाटन ख़ास रहा, खासकर रिवरफ्रंट साइड का दृश्य देखने लायक रहा।
आज सुबह अहमदाबाद की सैर से हुई। नर्मदा सरोवर के बगल चलते हुए; एक अलग तरीके का आनंद मिला। अहमदाबाद में एक आधुनिक आवासीय परिसर शांतिग्राम बसाया गया है, यह बहुत नियोजित तरीके से बनाया गया है। यह शहरी जीवनशैली का एक नया परिदृश्य है, जहाँ हरित वातावरण, स्वच्छता, शांति और सुविधाओं का उत्कृष्ट संतुलन देखने को मिलता है।
अहमदाबाद न केवल बापू की कर्मभूमि है, बल्कि यह शहर आज भी अपने मूल्यों को आधुनिकता के साथ जीवंत रखे हुए है। यहाँ की गलियाँ जहाँ कभी स्वतंत्रता सेनानियों के गतिविधियों का केंद्र हुआ करती थी, वो आज टेक्सटाइल मार्केट, विश्वविद्यालय, स्टार्टअप और नवाचार का अंतरराष्ट्रीय केंद्र बन गया है।
प्रवास के किस्सें
यात्रा की परीक्षा
भुज से द्वारका जाते समय यात्रा की थकान और मौसम में बदलाव ने असर दिखाना शुरू कर दिया। कुछ लापरवाही से जुकाम और बुख़ार हो गया, द्वारका में तबीयत ख़राब हुई। दवा लेकर कुछ देर अधिक विश्राम किया। फिर यात्रा जारी रही, मैंने इस दौरान सोचा — कि हम चाहे जितने स्थानों पर जाएं, शरीर की सीमाएं कभी-कभी हमारी मन की गति को प्रभावित कर सकती है। मन की शक्ति का ही परिणाम रहा, कि अगले पड़ाव की ओर हम जल्द निकल लिए।
गुहार मोटी में बच्चों के सवाल
पश्चिम भारत का अंतिम बिंदु गुहार मोटी को माना जाता है, मैं इसके गांव भी गया। इस गांव के बच्चों से मैंने बातचीत की। उनके सवाल, उनकी जिज्ञासा और उनका हौसला, मैं देखकर दंग रह गया। उन बच्चों के आँखों में देश के लिए कुछ कर गुजरने का सपना देखा, ये बच्चें बहुत मेहनती लग रहे थे। उनसे बात करके वास्तव में बहुत अच्छा लगा क्योंकि उसकी आँखों में न तो कोई संकोच था, न ही कोई भावुकता — केवल जिज्ञासा और साहस ही था।
ऐतिहासिक स्थलों को पढ़ना और वहाँ जाना
इस यात्रा ने मुझे यह स्पष्ट रूप से सिखाया कि किसी भी ऐतिहासिक स्थल को किताबों में पढ़ना और वास्तव में वहाँ जाकर उसे देखना; ये दोनों बहुत अलग-अलग बातें हैं। धौलवीरा, पोरबंदर जैसे स्थलों को परीक्षा के लिए पढ़ना और वहाँ जाना; अलग अनुभव है।
पुस्तकों में जो ‘अहमद शाह’, ‘सरदार पटेल’ या ‘गांधी’ के रूप में दिखाई देते हैं, वास्तव में उनकी मूर्तियाँ, भवन, आश्रम और सड़कें एक नया संवाद करती हैं। किताबें तथ्य देती हैं, लेकिन ज़मीन पर जाकर भाव पैदा होता है और भाव मनुष्य का स्वाभाविक और वास्तविक स्वरूप है।
विकास धर द्विवेदी
20 जुलाई 2025
अहमदाबाद, गुजरात
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