डायरी से: कश्मीर, कन्याकुमारी, किबिथू और कच्छ के साथ भारत भ्रमण पूरा


जुलाई, 2025: 4K का ही विचार रहा कि 20 महीनों के अंदर भारत के चारों कोनों का भ्रमण कर लिया। कश्मीर, कन्याकुमारी, पूर्वोत्तर भारत के अंतिम बिंदु किबिथू और पश्चिम के विशाल रेगिस्तान कच्छ में गया। ये कोई पर्यटन यात्रा नहीं थी बल्कि “अपना देश जानो और मानो” के सिद्धांत पर “युवाओं के चारधाम” की यात्रा रही। 

सबसे पहले दिसंबर 2023 में कन्याकुमारी गया— भारत का दक्षिणतम छोर। वहां त्रिवेणी संगम पर समुद्र की लहरों के पास खड़े होकर भारत माता से आशीर्वाद लिया और संकल्प लिया कि देश के चारों कोनों का भ्रमण जल्द होगा। 

फिर जुलाई 2024 में कश्मीर पहुँचा — धरती का स्वर्ग। श्रीनगर की डल झील, पहलगाम की हरियाली और गंदेरबल की घाटियाँ, इन सबने मन को एक शांति दी, जिसे शब्दों में पिरो पाना मुश्किल है। मैंने कश्मीर की कुल देवी खीर भवानी और माता वैष्णो देवी का भी आशीर्वाद लिया। बर्फ से ढके पहाड़ों की छांव में भारत के उत्तरी चेहरे को महसूस किया।

दिसंबर 2024 में पहुँचा किबिथू — अरुणाचल प्रदेश का वह बिंदु जहाँ भारत की सुबह सबसे पहले होती है। यहाँ का सन्नाटा और सैन्य चौकियाँ, देश की सीमाओं पर तैनात हमारे वीर जवानों के परिश्रम का अहसास कराती हैं। यहाँ भारत का मौन प्रहरी है, जिसे हर युवा को देखना चाहिए।

और अंत में, जुलाई 2025 में कच्छ पहुँचा — गुजरात की पश्चिमी सीमा पर फैला सफेद रण। इसके अंतिम बिंदु गुहार मोती गया, गाँव भी गया। इतिहास के नजरिए से धौलवीरा को भी समझा। रण-रण नहीं होता हमेशा, ये यहाँ आकर समझा। 

देश के चारों कोनों की यात्रा के दौरान; मैंने वहाँ निकट ग्रामीण परिवेश को भी समझा। अलग-अलग कोनों की विभिन्न चुनौतियाँ और निदान समझ में आया। भारत माता के प्रति आस्था और श्रद्धा में कहीं भी कोई कमी नहीं दिखी। सब राष्ट्र के लिए एक नजर आयें। यह यात्रा सिर्फ चार दिशाओं की नहीं रही, यह आत्म खोज के चार आयामों — संकल्प, संघर्ष, सेवा और साधना — को स्थापित करते हैं। 

4K की यात्रा से मैंने समझा-कश्मीर में, किसी भी मुद्दें पर पूर्वाग्रह से ग्रसित नहीं होना चाहिए। दक्षिण भारत में जाना, भाषा या संस्कृति मतभेद सतही है। पूर्वोत्तर में किबिथू जैसे सुदूरवर्ती क्षेत्र में जाना राष्ट्र सिर्फ राजधानी तक सीमित नहीं होता। गुजरात में समझा वास्तविक समृद्धि सिर्फ आंकड़ों में नहीं, बल्कि लोगों के आत्मसम्मान, सांस्कृतिक गर्व और सामुदायिक सहयोग में होती है।

विदित हो की 4K एक विचार है। यह सिर्फ चार कोनों तक पहुँचने की बात नहीं है, बल्कि युवाओं के लिए एक लक्ष्य है — भारत को जानने, समझने और विकसित भारत बनाने का। मैंने 4K यात्रा को 25 साल की उम्र से पहले ही पूरा कर लिया। मुझे इस बात की ख़ुशी की ख़ुद से किए वादे पूरे हुए। 

(दिल्ली में योजित लेख) 

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